Saturday, February 28, 2009

फ़िर वो मुखडा दुबारा नजर आया ,जिसे मै भुलाने लगा था

जिंदगी में दुबारा का भी अपना महत्व है । पाँच साल बाद फ़िर ,क्या आँखे थी ?...... एकटक निहारती । अचानक रात में दिखाई दी । मेरी तो साँसे तेज हो गई ..... पता नही ऐसा क्यों हुआ ? नही जानता । फ़िर वो मुखडा दुबारा नजर आया ,जिसे मै भुलाने लगा था । इस बार तस्वीर कुछ साफ़ थी ..... दोनों तरफ़ कुछ बात थी ।
अभी तक चेहरा जेहन में है । दिल बेचैन सा है ... कुछ सूझ नही रहा । पता नही ऐसा क्यों है । सोचता हूँ , आकर्षण किसी एक से बंधकर नही रहता । उसमे चंचलता कूट कूट कर भरी हुई है । पर यह चंचलता ठीक नही है । अब जाकर जाना ।

Wednesday, February 25, 2009

कभी - कभी खाना अच्छा बना लेता हूँ ....

कभी कभी खाना अच्छा बना लेता हूँ । उस दिन कुछ ज्यादा ही हो जाता है । पढ़ाई पर असर पड़ता है । चावल प्रिय है । खूब खाता हूँ । दिल्ली आने के बाद रोटियाँ भी तोड़ने लगा हूँ । चावल से पेट निकलने का डर भी रहता है । सो थोड़ा बहुत जोगिंग भी कर लेता हूँ ।
आजकल रोटियां अच्छी नही लग रही । रोटी बनाने में भी बड़ा झंझट है । बनाने में मन ही नही लगता । चावल बनाना आसान है...... कुकर में पानी डालकर रख दो , एक सिटी के बाद बन गया । मार्केट से सब्जी लाओ और खा लो । इधर मेरा कुकर सिटी देना भूल गया है । अंदाज से ही काम चलाना पड़ता है ।
बैचलर लाइफ है .... बढ़िया खाना कभी कभी नसीब होता है । चावल के साथ सब्जी होती है या दाल । तीनों का मिलन तो मुस्किल से ही होता है । जब कभी तीनों साथ होते है तो ओवर डोज की मुसीबत खड़ी हो जाती है ।
अभी तो खाने के लिए नही जीता ....जीने के लिए ही कुछ खा लेता हूँ ।
अरे मै बातों में कहा चला गया । फिसल जाना और उलटा सीधा सोचना आदत बन गई है । ये अच्छी बात नही है । अभी बहुत जोरों की भूख लगी है । चावल दाल बनाया हूँ । सोचता हूँ जल्दी से खा लूँ ............

Saturday, February 21, 2009

... अब रात हो गई

तुम्हे पहले आना था । अब काफी देर हो चुकी । जिंदगी उदास हो गई है । आसमान में बादल आ चुके है । वैसे मैंने काफी इन्तजार किया । मुझे यकीं था तुम आओगी पर इतनी देर कर दी ... अब रात हो गई ।
किस्मत सो गई .... आखे थक गई । अब जाओ ..... मै भी जा चुका । अब मुझे तन्हा रहने दो । मुझे मजाक बनने दो .... तुमसे कोई शिकायत नही । गलती मेरी है । इतना चाहा । सारा जीवन दे दिया । अब मेरी शाम आ गई है तो तुम भी ...
पागल था । तेरी मुस्कुराहटों का । जागता था रातभर तुमको यादकर ..... तुमने अपनी अदाओं से जादू कर दिया ।
मै खिचता चला गया । तू मेरी मंजील थी । अब मै क्या राहें भी थक गई पर तेरा दर्शन नही हुआ । अब मै जा रहा हूँ ...... सबको छोड़कर ।
अब तो कुछ बचा ही नही । अब तो ख़ुद से बातें करता हूँ । अपना हमसफ़र हो गया हूँ । हाँ तेरी याद जरुर है। कैसे छोड़ सकता हूँ .... वह तो धडकनों शामिल है । भला अपनी रूह को छोड़ सकता हूँ । कभी नही । तेरे बाद .... ये यादें ही तो जिंदगी है । मेरे पास तो अब यही है । जींदगी भर की कमाई ।

एक समय था । मै एक राही था । सुनसान राहों में अकेले भटकता रहा । तब तेरी याद आती थी । काश तुम हमसफ़र होती । अब तो पावों में जंजीरें है । मुझे बांधकर ले जाया जा रहा है । वह तेरी जरुरत नही । मै खुदगर्ज नही । अकेले जाना है । जी जी कर मरना है ......

Wednesday, February 18, 2009

याद नही वो दिन .....

याद नही वो दिन जो चले गए
शायद देखा एक सपना
सपने में दिखा उजाला
सपना टूट गया
अन्धेरें रह गए
याद नही वो पल जो चले गए
चाँद सितारों की बातें
अब नही कहना
मर मर के अब
नही जीना
अबतक तो
मर मर के ही जीते रहे
याद नही वो दिन जो चले गए
आशा की किरणों से
मेरा नाता टूट गया
आगे मै बढ़ चला
कुछ पीछे छुट गया
अबतक तो
ऐसे ही चलते रहे
याद नही वो दिन जो चले गए

Sunday, February 15, 2009


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Friday, February 13, 2009

विचित्र आदमी

मै भी एक विचित्र आदमी हूँ .अपने को जान रहा हूँ। परेशान हो रहा हूँ । कोई राह नही दिखती ।
सोचता हूँ ,विचित्रता क्या है .यह कितनी गहरी है .कोई नाम नही कोई पहचान नही ।
नही समझ पाता। खोज रहा हूँ ,कई दिनों से अंजुरी भर रोशनी । वो भी मुअस्सर नही ।
सारा ताना बाना अपने से ही छिपाता हूँ .बड़ा ही विचित्र आदमी हूँ ।
जानता हूँ चरित्र की जटिलता मुझमे नही है । साफ हूँ । फिर भी अपने से अनजान हूँ ।
विचित्र परिस्थितियों में ओस की बूंदों की तरह लुढ़कता रहा हूँ .निजपन का अभाव है ।
भय नही ,छल नही ,फिर भी विचित्र हूँ .ख़ुद से संवाद में माहिर हूँ ,पर प्रतिरोध में नही ।
अपने में निखर चाहता हूँ .मिसाल खड़ी करना चाहता हूँ ,पर लुदकाव जाता ही नही।
बेचैनी है ,वह भी विचित्र है।
सोचता हूँ ,जीवन एक बार मिलता है । उमर निकल जायेगी तब मेरी सतरंगी इच्छाओं का
क्या होगा ।
इसी सोच में समय बरबाद करता हूँ .बड़ा विचित्र आदमी

Monday, February 9, 2009

बादल देख
मन गाता रहा
दीपक देख
रोज जलता रहा
चाँद देख
गुनगुनाता रहा
ज्वाला देख
मन में धधकता रहा
पंछी देख
रोज चलता रहा
उजाला देख
आस बाँधता रहा
आकाश देख
सोचता रहा
क्या यही जीवन धारा है

Sunday, February 8, 2009

एक अजब खामोश धड़कन
शुन्य में भी आती जीसकी आवाज
खोजता हूँ हर तरफ़
दर्द का पता नही
हर रोज सवाल करता हूँ
समाधान पाता नही
एक अजब खामोश धड़कन
वीचलीतहो रहा मन
मन वीराने में घुलकर खो गया
लगा राह में कही पर गुम हो गया
बेजान आखें देखती रही
वह आखों से ओझल हो गया
एक सुनसान घर
देखता रहा एकटक
अंदर से आती आवाज
वो अजीब अँधेरी रात
मै गया सहम
एक अजब खामोश धड़कन