Saturday, October 24, 2009

छठ पूजा और बचपन

आज हमारे घर छठ पूजा मनाई जा रही है और मै दिल्ली में हूँ । कुछ भी अच्छा नही लग रहा । यादें ताज़ा हो रही है जब मै अपनी मम्मी के साथ घाट पर जाता था । हल्की ठण्ड भी लगती थी । नंगे पाँव डोला लिए शाम को जब हम घर से निकलते थे तो कितना अच्छा लगता था । ज़िन्दगी के वो दिन कितने सुहावने लगते थे और क्या मिठास थी उन दिनों की !...घाट पर जाने के बाद कितना मानसिक शान्ति और आध्यात्मिक सुख प्राप्त होता था । उस शान्ति को बयां नही कर सकता । छठ पूजा के अवसर पर बहुत लोग शहर से गाँव आए हुए होते थे ..उनसे मिलकर बहुत अच्छा लगता था । शाम को घाट से वापस आना और अगले दिन चार बजे भोर में फ़िर डोला लेकर घाट पर जाने की तैयारी का आनंद अनमोल है ।
दिल करता है .. चला जाऊं और डोला लेकर घाट पर निकल जाऊं । लोगों से खूब बातें करूँ । सुबह अर्घ्य के बाद ठेकुए का आनंद उठाऊं । प्रसाद के रूप में कई फलों का स्वाद ....और नारियल के रस की यादें ताज़ा हो रही है । सुबह में घाट पर मम्मी के लिए चाय ले जाना , उनका ध्यान रखना और उनका आर्शीवाद देना सब याद आता है ।