tag:blogger.com,1999:blog-19880484845391444702024-02-07T21:12:42.095-08:00जीवन धाराmark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.comBlogger50125tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-91840005086702768832012-10-17T00:17:00.001-07:002012-10-17T00:17:19.911-07:00जिज्ञासा(JIGYASA) : देवकीनन्दन खत्री द्वारा लिखित चन्द्रकान्ता को ह...<a href="http://jiwanjigyasa.blogspot.com/2012/10/blog-post_2968.html?spref=bl">जिज्ञासा(JIGYASA) : देवकीनन्दन खत्री द्वारा लिखित चन्द्रकान्ता को ह...</a>: हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ मध्यकाल में अवधी और ब्रज भाषाओं में धार्मिक और दार्शनिक काव्य रचनाओं से हुआ। देवकीनन्दन खत्री द्वारा लिखित ...mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-75463474690764941042012-09-27T23:42:00.001-07:002012-09-27T23:42:33.978-07:00जिज्ञासा(JIGYASA) : लताजी ने हमें संगीत के माध्यम से काफी कुछ दिया है....<a href="http://jiwanjigyasa.blogspot.com/2012/09/blog-post_2866.html?spref=bl">जिज्ञासा(JIGYASA) : लताजी ने हमें संगीत के माध्यम से काफी कुछ दिया है....</a>: लताजी ने हमें संगीत के माध्यम से काफी कुछ दिया है, जैसे प्रेम और अनुराग। मुझे उम्मीद है कि वह हमेशा जीवित रहेंगी और हमें उनका आशीर्वाद प्राप...mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-2290393703304187932011-10-25T03:34:00.000-07:002011-10-25T03:34:52.088-07:00हंसों ना !<a href="http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/jeewandhaara/entry/%E0%A4%B9_%E0%A4%B8_%E0%A4%A8">हंसों ना !:जीवन धारा :मार्कण्डेय रायका ब्लॉग-नवभारत टाइम्स</a>mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-23228694673159576372011-10-15T09:38:00.000-07:002011-10-15T09:38:18.407-07:00आप करप्ट पर्सनाल्टी है क्या !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 20px;"></span><br />
<div style="text-align: left;">गरीबी ! मतलब बिमारी और एक बेहूदा मजाक !</div><div style="text-align: left;">एक अपराध ! किसी सज्जन के मुंह से सुना,</div><div style="text-align: left;">सज्जन उपरी गिलास के थे ,सो उन्हें निचली गिलास </div><div style="text-align: left;">के सभी लोग बीमार दिखे ! उनकी फिलासफी के मुताबिक़ </div><div style="text-align: left;">ये लोग हाईली अनसिविलाइज्द पैदा होते है !</div><div style="text-align: left;">न खाने का ढंग ,न पहनने ओढ़ने का ढंग </div><div style="text-align: left;">वे विश्वासपात्र नहीं ,चोर होते है!</div><div style="text-align: left;">मेरे प्रतिवाद करने पर भड़क गए ,</div><div style="text-align: left;">और लगे सुबूत देने !</div><div style="text-align: left;">मैंने भी कह दिया की भाई साब ,आप तो खिचड़ी लगते है ,</div><div style="text-align: left;">मुझे तो आपमें उपरी या निचली गिलास के कोई लक्षण दिखते नहीं </div><div style="text-align: left;">आप करप्ट पर्सनाल्टी है क्या !</div></div>mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-37145468446236898642011-04-08T23:29:00.000-07:002011-04-08T23:29:09.664-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="390" src="http://www.youtube.com/embed/gqSSCA49biU" title="YouTube video player" width="480"></iframe></div>mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-73527934420033390942011-04-07T22:37:00.001-07:002011-04-07T22:37:46.716-07:00दिल बेचैन सा है ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">अभी तक चेहरा जेहन में है । दिल बेचैन सा है ... कुछ सूझ नही रहा । पता नही ऐसा क्यों है । सोचता हूँ , आकर्षण किसी एक से बंधकर नही रहता । उसमे चंचलता कूट कूट कर भरी हुई है । पर यह चंचलता ठीक नही है । अब जाकर जाना । </div>mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-22805825353309649182011-02-16T20:01:00.000-08:002011-02-16T20:01:11.431-08:00सबकुछ याद है ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">मुझे अपने घर का आँगन व सामने की गली याद आती है ,<br />
जहाँ कभी , किसी जमाने में मेले लगते थे ।<br />
वो खिलौने याद आते है ,जो कभी बिका करते थे ।<br />
<br />
छोटा सा घर , पर बहुत खुबसूरत ,<br />
शाम का समय और छत पर टहलना ,<br />
सबकुछ याद है ।<br />
<br />
कुछ मिटटी और कुछ ईंट की वो इमारत ,<br />
वो रास्ते जिनपर कभी दौडा करते थे ,<br />
सबकुछ याद है ।<br />
<br />
गंवई गाँव के लोग कितने भले लगते थे ,<br />
सीधा सपाट जीवन , कही मिलावट नही ,<br />
दूर - दूर तक खेत , जिनमे गाय -भैसों को चराना ,<br />
वो गोबर की गंध व भैसों को चारा डालना ,<br />
सबकुछ याद है ।<br />
<br />
गाय की दही न सही , <span>मट्ठे </span>से ही काम चलाना ,<br />
मटर की छीमी को गोहरे की आग में पकाना ,<br />
सबकुछ याद है ।<br />
<br />
वो सुबह सबेरे का अंदाज , गायों का रम्भाना ,<br />
भागते हुए नहर पर जाना और पूरब में लालिमा छाना ,<br />
सबकुछ याद है ।<br />
<br />
बैलों की खनकती हुई घंटियाँ , दूर - दूर तक फैली हरियाली ,<br />
वो पीपल का पेड़ और छुपकर जामुन पर चढ़ जाना ,<br />
सबकुछ याद है ।<br />
<br />
पाठशाला में किताबें खोलना और छुपकर भाग जाना ,<br />
दोस्तों के साथ बागीचों में दिन बिताना ,<br />
सबकुछ याद है ।<br />
<br />
नानी से कहानी की जिद करना ,मामा से डांट खाना ,<br />
नाना का खूब समझाना ,<br />
मीठे की भेली को चुराना और चुपके से निकल जाना<br />
सबकुछ याद है ।</div>mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-9073577730369246962011-02-09T22:37:00.000-08:002011-02-09T22:37:10.291-08:00धन आनंद का स्रोत नही ...अगर ऐसा होता तो हर धनवान के घर लक्ष्मी के साथ साथ सरस्वती भी निवास करती और उसके जीवन में कोई समस्या भी नही होती ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">धन ही सबकुछ नही ....जीवन में और भी बहुत कुछ है कमाने के लिए ....धन तो एक अदना सा हिस्सा है । धन कुछ हो सकता है ,पर सबकुछ तो कभी भी नही । केवल पैसा ही जीवन को खुशियों से नही भर सकता ..खुशियाँ कमाने के और भी बहुत सारे रास्ते है । धन आनंद का स्रोत नही ...अगर ऐसा होता तो हर धनवान के घर लक्ष्मी के साथ साथ सरस्वती भी निवास करती और उसके जीवन में कोई समस्या भी नही होती ।<br />
इतिहास उनको याद करता है ,जो दूसरो के लिए कुछ करते हुए मर गए ....उन्ही की स्मृति दिमाग में कौतुहल पैदा करती है ,न की उनकी जिन्होंने अपना जीवन पैसे कमाने में और दूसरो को चूसने में लगा दिया । आज पैसे का बोलबाला है ..सही भी है , पर एक हद तक ....मूर्खों की तरह केवल पैसे लूटने के चक्कर में हम जीवन का मूल उद्देश्य भूल जाते है ....जीवन के अंत में कुछ हासिल नही कर पाते ।<br />
कुछ लोग जन्म लेते है ..रूपया कमाते है और परलोक की यात्रा पर निकल जाते है ..ऐसे लोगों को इतिहास याद नही करता .....इतिहास ऐसे लोगों को याद करता है जिन्होंने इस जगत को कुछ दिया हो । हम उन महानुभावों को याद करते है ,जिन्होंने स्वार्थ की उपासना नही की .............. । </div>mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-84681448551406954672011-02-09T01:30:00.000-08:002011-02-09T01:30:52.322-08:00उन सवालों के जबाब कोई देने वाला नही था..............<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div>जब स्कूल में <span class="">था, </span><span class=""></span> तो ये दुनिया बड़ी अजीब लगती थी . सबकुछ बड़ा ही अजीब लगता था . बाल मन में कई अजीब सवाल उठते थे ....उन सवालों के जबाब कोई देने वाला नही था । आज जब कई लोग उनका जबाब दे सकते है तो सवाल ही नही उठते । वो बचपन कहाँ गया ....वो इक्षाशक्ति और जानने की लालशा कहाँ गई ....भाई मै तो बड़ा ही परेशान हूँ । कहतें है अतीत को याद नही करना चाहिए लेकिन मै अपनी बचपन की यादों को कैसे छोड़ दूँ ? वो मस्त जीवन , वो मीठी यादें .....नही भूल सकता । गाँव की गलियों में घूमना । कोई चिंता फिकर नही .... डांट खाना और फ़िर वही करना ,आगा पीछे सोचने की कोई कोशिश नही । घर से ज्यादा दोस्तों की चिंता ....कौन क्या कर रहा है .....इसकी ख़बर रखना । आज कई यादें धुंधली हो गई है ....कुछ तो लुप्त हो गई है ....हाय रे मेमोरी । याद करने की कोशिश बेकार हो जाती । वो बचपन छोटा सफर था लेकिन अकेला सफर तो कतई नही था । आज तो मन भीड़ में भी अकेला लगता है .... ये दर्द बयां नही कर सकता । केवल महशुश कर सकता हूँ । <span class=""></span></div><span class=""></span><span class=""></span><span class=""></span></div>mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-31242160726886718452010-12-23T22:57:00.000-08:002010-12-23T22:57:45.099-08:00लमुहालमुहा एक स्थान जिससे मुझे काफी लगाव है .मेरे ननिहाल में एक तालाब है जिसे सभी लमुहा के नाम से जानते है .बचपन में यही पर छठ माता की घाट बनती थी और सभी बच्चे वहां की साफ़ सफाई करते थे .छठ पर्व की रात को हम मिटटी की बनी ढकनी में दिया रख कर लमुहा में तैराते थे उसको धान की पुआल पर रख कर लमुहा के बिच में करने का प्रयास करते थे . सच बहुत मज़ा आता था.मै एक अच्छा तैराक भी था .कई बार मैंने लामुहा को आर पार भी किया था .सब बच्चे मेरा लोहा मानते थे .अभी कुछ दिन पहले उस स्थान को देख कर वो दिन याद आ गए .लमुहा एक ऐसी जगह है जहाँ से मेरे बचपन की यादें जुडी है .mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-1026346322297989742009-12-04T08:04:00.000-08:002009-12-04T08:04:45.879-08:00मजे के लिए बहते जाना उचित है क्या ?जीवन की इस धारा में बहते चले जाना कभी कभी बहुत अच्छा भी लगता है ..पर कभी लगता है की इसी तरह बिना किसी प्रतिरोध के बहते रहना अच्छा नहीं है . ऐसा लगता है की इनर्जी ख़त्म होती जा रही है . उसे समेटना होगा और फिर प्रतिरोध भी करना होगा .<br />
....पर क्या करे इस बहाव का भी अपना मज़ा है भले ही कोई उपलब्धि नहीं है ..पर शान्ति बहुत है . क्या इस शान्ति को छोड़ कर आगे बढ़ जाऊं . हाँ यही सही रहेगा ..पर फिर शान्ति की लालच आ ही जाती है ....बहुत बुरी आदत है ..पर मजेदार आदत है ....आप ही बताओ ज़िन्दगी ऐसे चलती है भला ! मजे के लिए बहते जाना उचित है क्या ?mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-7535176475196924522009-10-24T08:18:00.000-07:002009-10-24T08:42:16.364-07:00छठ पूजा और बचपनआज हमारे घर छठ पूजा मनाई जा रही है और मै दिल्ली में हूँ । कुछ भी अच्छा नही लग रहा । यादें ताज़ा हो रही है जब मै अपनी मम्मी के साथ घाट पर जाता था । हल्की ठण्ड भी लगती थी । नंगे पाँव डोला लिए शाम को जब हम घर से निकलते थे तो कितना अच्छा लगता था । ज़िन्दगी के वो दिन कितने सुहावने लगते थे और क्या मिठास थी उन दिनों की !...घाट पर जाने के बाद कितना मानसिक शान्ति और आध्यात्मिक सुख प्राप्त होता था । उस शान्ति को बयां नही कर सकता । छठ पूजा के अवसर पर बहुत लोग शहर से गाँव आए हुए होते थे ..उनसे मिलकर बहुत अच्छा लगता था । शाम को घाट से वापस आना और अगले दिन चार बजे भोर में फ़िर डोला लेकर घाट पर जाने की तैयारी का आनंद अनमोल है ।<br />दिल करता है .. चला जाऊं और डोला लेकर घाट पर निकल जाऊं । लोगों से खूब बातें करूँ । सुबह अर्घ्य के बाद ठेकुए का आनंद उठाऊं । प्रसाद के रूप में कई फलों का स्वाद <span class="">....और नारियल के रस की यादें ताज़ा हो रही है । सुबह में घाट पर मम्मी के लिए चाय ले जाना , उनका ध्यान रखना और उनका आर्शीवाद देना सब याद आता है । </span>mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-43364587973953406422009-09-04T01:45:00.000-07:002009-09-04T01:47:21.043-07:00जीवन का अर्थ .....धन ही सबकुछ नही ....जीवन में और भी बहुत कुछ है कमाने के लिए ....धन तो एक अदना सा हिस्सा है । धन कुछ हो सकता है ,पर सबकुछ तो कभी भी नही । केवल पैसा ही जीवन को खुशियों से नही भर सकता ..खुशियाँ कमाने के और भी बहुत सारे रास्ते है । धन आनंद का स्रोत नही ...अगर ऐसा होता तो हर धनवान के घर लक्ष्मी के साथ साथ सरस्वती भी निवास करती और उसके जीवन में कोई समस्या भी नही होती ।<br />इतिहास उनको याद करता है ,जो दूसरो के लिए कुछ करते हुए मर गए ....उन्ही की स्मृति दिमाग में कौतुहल पैदा करती है ,न की उनकी जिन्होंने अपना जीवन पैसे कमाने में और दूसरो को चूसने में लगा दिया । आज पैसे का बोलबाला है ..सही भी है , पर एक हद तक ....मूर्खों की तरह केवल पैसे लूटने के चक्कर में हम जीवन का मूल उद्देश्य भूल जाते है ....जीवन के अंत में कुछ हासिल नही कर पाते ।<br />कुछ लोग जन्म लेते है ..रूपया कमाते है और परलोक की यात्रा पर निकल जाते है ..ऐसे लोगों को इतिहास याद नही करता .....इतिहास ऐसे लोगों को याद करता है जिन्होंने इस जगत को कुछ दिया हो । हम उन महानुभावों को याद करते है ,जिन्होंने स्वार्थ की उपासना नही की .............. ।mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-56657462912009689982009-07-04T20:58:00.000-07:002009-07-04T21:13:48.656-07:00.हमारा समाज अब आखिरी साँसे ले रहा है....आज लोगो की संवेदना आत्म केंद्रित हो गई है । यह नगरीकरण और उदारीकरण का ही प्रभाव है। एक मिनट भी शुकून से बात नही कर सकते । केवल शब्दों की पच्चीकारी ही करते है । बनावटी भाषा का प्रयोग और दिखावटी मुस्कराहट ने तो लोगो की आत्मा को ही खंगाल दिया है । आप ही बताओ... इस संवेदना विहीन समाज में कैसे रहने का मन करेगा ?<br />ऐसा प्रतीत होता है ....हमारा समाज अब आखिरी साँसे ले रहा है । कुछ ही दिनों में उसकी मौत होने वाली है ...और उसके बाद हम जानवरों की तरह रहेगे । सामजिक समरसता ख़त्म होने के कगार पर है ..एक दुसरे को पीछे छोड़ना ही सभ्यता का प्रतिक हो गया है । मुझे अभी भी उम्मीद है की अन्तिम साँसे ले रहा समाज को कोई संजीवनी मिल जायेगी ।ऐसा भी हो सकता है ...मै ज्यादा आशावादी हो गया हूँ । कुछ भी हो उम्मीद का दामन तो छोड़ा नही जा सकता ...यह हमारी भी जिम्मेदारी है । संजीवनी हम भी ढूंढ़ सकते है ।mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-73825715817414180682009-07-01T04:59:00.000-07:002009-07-01T05:48:12.715-07:00लड्डू .....लड्डू ......! भारत की काफी फेमस मिठाई ...लड्डू देखते ही लोगो के मुंह में पानी आ जाता है । मंगल वार को तो इसकी कीमत वैसे ही बढ़ जाती है क्योंकि इस दिन हनुमान जी को लड्डू का भोग लगाया जाता है ....लड्डू तो गणेश जी को भी बहुत पसंद है तभी तो उनके आगे लड्डू से भरी थाल ही रखी रहती है । कुल मिलाकर इसे नेशनल मिठाई कहने में कोई बुराई नही है ।<br />मैंने कई बच्चों के नाम भी इसी मिठाई पर रखे हुए देखे है । वैसे तो मुझे लड्डू खाना अच्छा लगता है ...पर इतना नहीं की इसमे डूबा ही रहूँ । इतना जरुर है की खा लेता हूँ ....पर कुछ दिनों से लड्डू शब्द मुझे बहुत अच्छा लगने लगा है .....लगता है ...इससे ज्यादा मिठास तो दुनिया के दुसरे किसी शब्द में नही हो सकता । पहले तो कभी ऐसा नही हुआ ....आजकल इसमे इतनी मिठास कहाँ से आ गई ?.....या लड्डू के प्रति मेरा नजरिया बदल गया ....कहीं कुछ हुआ तो नहीं .....कोई घटना तो नहीं घटी ...जिसकी वजह से लड्डू इतना प्यारा हो गया ....पता नहीं मुझे तो ऐसा कुछ याद नहीं है .....<br />पहले सोचता था कैसा नाम है ....लड्डू !ऐसा लगता था जैसे किसी बुद्धू आदमी की प्रतिमा लड्डू शब्द में छिपी हुई है ....साफ़ शब्दों में कहें तो लड्डू शब्द अनाड़ी का पर्याय लगता था । ....तो आज क्या हुआ ?...मेरे जिंदगी का सबसे कीमती पल ....और लड्डू की मिठास ने मुझे शायद बहुत ही कूल कर दिया । लड्डू का ही प्रताप है ...अब गुस्सा नही आता ....मुस्कराहट बढ़ गई है .....हर जगह मिठास ही दिख रही है ....क्या कहूँ? लड्डू ने तो मुझे बिल्कुल बदल दिया है । अब तो सपनो में भी ......<br />जब लड्डू शब्द सुनता हूँ तो ...सारे शरीर में सिहरन पैदा होती है ....एनर्जी दुगुनी हो जाती है ।<br />मन ही मन कहता हूँ .... मेरे लड्डू तू तो बदल गया रे .....लड्डू शब्द सुनने के लिए बेचैन रहता हूँ ....कास !मेरा नाम लड्डू ही होता । ऐसा लगता है ...मेरा मन लड्डू से ही जुड़ गया है ...इसकी मिठास हर जगह फैली हुई है ....अब यह मेरे लिए जिंदगी का मकसद बन गया है .... खाने वाला लड्डू तो सिर्फ़ प्रतीकात्मक है .....मेरा लड्डू तो मन की गहराइयों से निकला है ....उसे केवल महशुश ही किया जा सकता है ।<br />मेरे साथ कुछ अजीब हो रहा है ....लड्डू शब्द सुनना ही पहली प्राथमिकता बन गई है ......लड्डू को सुनते ही सारी बेचैनी ख़त्म हो जाती है ...मन को बहुत ही शुकून मिलता है ......ऐ मेरे लड्डू! सुनो ! जिंदगी में ऐसे ही मिठास भरते रहना ....mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-72793082125607470182009-06-26T19:37:00.000-07:002009-06-26T20:56:31.970-07:00कुत्तों की यूनिटी खतरे में ...आज, जब मै अपने रूम से निकला तो देखा की एक कुत्ता एक कूड़ा उठाने वाले पर जोर जोर से भौंक रहा है । वह बहुत जोर से भौक रहा था .....ऐसा लगा उसने अपनी पुरी शक्ति लगा दी हो । बेचारा कूडे वाला उसकी तो जान ही अटक गई थी । दो तिन और कुत्तें वही बैठे हुए थे । वे सब ऊँघ रहे थे । उनको कोई फर्क नही पड़ा की उनका एक साथी कुछ कर रहा है । मुझे यह देख घोर आर्श्चय हुआ । गाँव याद आ गया । गाँव में अगर किसी एक मुद्दें को लेकर कोई कुत्ता भौकना शुरू करता था तो मजाल है की उसके आस पास के कुत्तें चुप रहे । वे तुंरत यूनिटी दिखाते हुए साथ देने लगते ।<br />आज सोचता हूँ की इंसान शहरी होकर एक दुसरे के साथ मिलना जुलना ,दुःख दर्द में शरीक होना तो छोड़ ही चुका है .....इसका असर शहरी कुत्तों पर भी पड़ा है ,तभी तो वे उस यूनिटी को भूल चुके है जो कभी उनकी विरासत रह चुकी है । मै इसे सोचते सोचते आगे बढ़ गया ..... लड्डू चलो चुपचाप...... आगे अभी बहुत से बदलाव देखने है । एक दिन तो इंसानियत को भी ख़त्म होते देखना है .....तब मुझे लगा की ये तो एक छोटी सी बात है और मेरे कदम आगे बढ़ गए ।mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-57779378328707918702009-06-19T04:32:00.000-07:002009-06-19T04:33:02.921-07:00एक बंगला बने न्यारा ......<span>बाहर</span> <span>कोई</span> <span>संगीत</span> <span>बज</span> <span>रहा</span> <span>है</span> , <span>ऐसा</span> <span>लगा</span> ।<br /><span>गीत</span> <span>चल</span> <span>रहा</span> <span>था</span> ...<br />''<span>एक</span> <span>बंगला</span> <span>बने</span> <span>न्यारा</span> ......''<br /><span>के</span> <span>एल</span> <span>सहगल</span> <span>साहब</span> <span>की</span> <span>आवाज</span> <span>में</span> । <span>रात</span> <span>के</span> <span>करीब</span> <span>ग्यारह</span> <span>बजे</span> । <span>यह</span> <span>गीत</span> <span>मेरे</span> <span>शरीर</span> <span>में</span> <span>सिहरन</span> <span>पैदा</span> <span>कर</span> <span>देता</span> <span>है</span> ।<br /><span>सारे</span> <span>जीवन</span> <span>का</span> <span>फल्स्फां</span> <span>इसी</span> <span>में</span> <span>दिखता</span> <span>है</span> ।<br /><span>मुझे</span> <span>शुरू</span> <span>से</span> <span>ही</span> <span>पुराने</span> <span>गानों</span> <span>की</span> <span>हवा</span> <span>नसीब</span> <span>हुई</span> <span>है</span> । <span>उन</span> <span>हवाओं</span> <span>में</span> <span>जो</span> <span>आनंद</span> <span>है</span> ...<span>वह</span> <span>नए</span> <span>गाने</span> <span>के</span> <span>झोकों</span> <span>में</span> <span>कहाँ</span> ।<br /><span>अतीत</span> <span>के</span> <span>भूले</span> <span>बिसरे</span> <span>गीत</span> <span>मुझे</span> <span>अपनी</span> <span>पुरानी</span> <span>तहजीब</span> <span>याद</span> <span>दिलाते</span> <span>है</span> । <span>सोचते</span> <span>सोचते</span> <span>आंखों</span> <span>में</span> <span>नमी</span> <span>छा</span> <span>जाती</span> <span>है</span> ।mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-55749330954331756652009-05-07T00:12:00.000-07:002009-05-07T00:13:10.775-07:00...अभी तुमने मुझे जाना ही नही ।इरादा ........ !<br />इरादा तो इतना है की कब्र से भी निकल आऊं ।<br />पर केवल उजाले के लिए । यही एक चीज मुझे कब्र से भी बाहर निकाल सकती है ।<br />मजाक नही कर रहा ....अभी तुमने मुझे जाना ही नही ।mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-7390166416229423312009-04-29T04:01:00.000-07:002009-04-29T04:14:16.814-07:00एक सपने के टूट जाने से जिंदगी ख़त्म नही हो जाती ....जीवन एक संगिनी की तरह है । हमेशा आपके साथ । राह में हर मोड़ पर कदम मिलाते हुए ।<br />कुछ ख़त्म हो गया तो क्या हुआ । बहुत कुछ अभी बाकी है , मेरे दोस्त .....कहाँ खो गए ।<br />दोस्त ! एक सपने के टूट जाने से जिंदगी ख़त्म नही हो जाती । बहुत से सपने अभी भी बुने<br />जा सकते है । टूटने दो यार एक सपने को ..वह टूटने के लिए ही था ।<br />हर शाम के बाद सुबह , हर सुबह के बाद शाम । यह तो प्रकृति का नियम है । अभी शाम है ...<br />मेरे दोस्त । सुबह का इन्तजार करो । आनेवाला ही है । फ़िर डर कैसा ? जम कर करो ,इन्तजार ।<br />क्या कहू दोस्त ....जीवन में अँधेरा भी तो जरुरी है । तभी तो उजाले का प्रश्फुटन होगा ।<br />अंधेरे के बाद का उजाला ज्यादा मीठा होता है । चख कर तो देखो ।mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-79571429065537587612009-04-14T07:57:00.000-07:002009-04-14T08:19:43.730-07:00साथी ....एक बछडा । उसे काफी प्यार करता था । हरदम उछल कूद मचाता । मेरा दोस्त बन गया । बस्ता फेंक उसी से बात करता । आँखें बड़ी प्यारी थी । जब उसे लगता की मै स्कुल से आ गया तो मेरी ही ओर एकटक देखता रहता ।मै भी उसे निराश नही करता , भागकर उसके पास चला जाता । एक दिन रात में अचानक चला गया । भगवान् ने उसे वापस बुला लिया ।ऐसा लगा... मेरी दुनिया उजड़ गई । बचपन का एक मूक साथी बिछड़ गया । जिंदगी के इस भाग दौड़ में वह हमेशा याद आता है ।<br />(दोस्त आज भी तुझे हर पल याद करता हूँ )mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-37125880078743415912009-04-09T06:01:00.000-07:002009-04-09T06:03:05.559-07:00मैडम क्युरी .....<span>मेरी</span> <span>क्युरी</span> <span>का</span> <span>नाम</span> <span>उस</span> <span>वक्त</span> <span>सुना</span> <span>था</span> <span>जब</span> <span>चौथी</span> <span>क्लास</span> <span>में</span> <span>था</span> <span>।</span> <span>मामा</span> <span>जी</span> <span>एक</span> <span>किताब</span> <span>लाये</span> <span>थे</span> <span>जिसमे</span> <span>लिखा</span> <span>था</span> <span>की</span> <span>इन्हे</span> <span>दो</span> <span>बार</span> <span>नोबल</span> <span>प्राइज़</span> <span>मिल</span> <span>चुका</span> <span>है</span> <span>।</span> <span>पहली</span> <span>महिला</span> <span>भी</span> <span>है</span> ,<span>जिनको</span> <span>नोबल</span> <span>प्राइज़</span> <span>मिला</span> <span>।</span> <span>मामा</span> <span>जी</span> <span>ने</span> <span>कहा</span> <span>देख</span> <span>लो</span> <span>इस</span> <span>महिला</span> <span>को</span> <span>इसके</span> <span>जैसा</span> <span>कोई</span> <span>नही</span> <span>हुआ</span> <span>आज</span> <span>तक</span> <span>।</span> <span>दो</span> <span>बार</span> <span>नोबल</span> <span>प्राइज़</span> <span>जित</span> <span>चुकी</span> <span>है</span> <span>।</span> <span>मैंने</span> <span>पहली</span> <span>बार</span> <span>नोबल</span> <span>प्राइज़</span> <span>का</span> <span>नाम</span> <span>भी</span> <span>सुना</span> <span>।</span> <span>समझ</span> <span>में</span> <span>नही</span> <span>आया</span> <span>।</span> <span>इतना</span> <span>जरुर</span> <span>समझ</span> <span>लिया</span> <span>की</span> <span>एक</span> <span>बड़ा</span> <span>पुरस्कार</span> <span>होगा</span> <span>।</span> <span>बाद</span> <span>में</span> <span>नोबल</span> <span>को</span> <span>भी</span> <span>अच्छी</span> <span>तरह</span> <span>से</span> <span>जाना</span> <span>और</span> <span>मैडम</span> <span>क्युरी</span> <span>को</span> <span>भी</span> <span>।</span> <span>ग्यारहवी</span> <span>क्लास</span> <span>में</span> <span>देवरिया</span> <span>के</span> <span>इंटर</span> <span>कोलेज</span> <span>में</span> <span>प्रवेश</span> <span>लिया</span> <span>।</span> <span>पास</span> <span>में</span> <span>ही</span> <span>एक</span> <span>नागरी</span> <span>प्रचारणी</span> <span>सभा</span> <span>थी</span> <span>।</span> <span>मै</span> <span>अक्सर</span> <span>वहां</span> <span>न्यूज</span> <span>पेपर</span> <span>व</span> <span>पत्रिकाएं</span> <span>पढने</span> <span>जाया</span> <span>करता</span> <span>था</span> <span>।</span> <span>एक</span> <span>दिन</span> <span>वही</span> <span>से</span> <span>मैडम</span> <span>क्युरी</span> <span>पर</span> <span>आधारित</span> <span>एक</span> <span>किताब</span> <span>लाया</span> <span>और</span> <span>उसे</span> <span>पुरे</span> <span>मनोयोग</span> <span>से</span> <span>पढ़ा</span> <span>।</span> <span>बचपन</span> <span>की</span> <span>यादें</span> <span>और</span> <span>मामा</span> <span>जी</span> <span>का</span> <span>चेहरा</span> <span>सामने</span> <span>उभर</span> <span>आया</span> <span>।</span><br /><br /><span>मैडम</span> <span>क्युरी</span> <span>विख्यात</span> <span>विख्यात</span> <span>भौतिकविद</span> <span>और</span> <span>रसायनशास्त्री</span> <span>थी।</span> <span>पोलैंड</span> <span>के</span> <span>वारसा</span> <span>नगर</span> <span>में</span> <span>जन्मी</span> <span>मेरी</span> <span>ने</span> <span>रेडियम</span> <span>की</span> <span>खोज</span> <span>की</span> <span>थी।</span><span>वारसा</span> <span>में</span> <span>महिलायों</span> <span>को</span> <span>उच्च</span> <span>शिक्षा</span> <span>की</span> <span>अनुमति</span> <span>नही</span> <span>थी</span> <span>।</span> <span>अतः</span> <span>मेरी</span> <span>ने</span> <span>चोरी</span> <span>छिपे</span> <span>उच्च</span> <span>शिक्षा</span> <span>प्राप्त</span> <span>की</span> <span>।</span> <span>पेरिस</span> <span>विश्वविद्यालय</span> <span>में</span> <span>प्रोफ़ेसर</span> <span>बनने</span> <span>वाली</span> <span>पहली</span> <span>महिला</span> <span>होने</span> <span>का</span> <span>गौरव</span> <span>भी</span> <span>मिला।</span> <span>यहीं</span> <span>उनकी</span> <span>मुलाक़ात</span> <span>पियरे</span> <span>क्यूरी</span> <span>से</span> <span>हुई</span> <span>जिनसे</span> <span>उनकी</span> <span>बाद</span> <span>में</span> <span>शादी</span> <span>भी</span> <span>हो</span> <span>गई</span> <span>।</span> <span>इन</span> <span>दोनों</span> <span>ने</span> <span>मिल</span> <span>कर</span> <span>पोलोनियम</span> <span>की</span> <span>खोज</span> <span>की</span> <span>।</span> <span>इसके</span> <span>बाद</span> <span>मैडम</span> <span>क्युरी</span> <span>ने</span> <span>रेडियम</span> <span>की</span> <span>भी</span> <span>खोज</span> <span>की</span> <span>।</span> <span>१९०३</span> <span>में</span> <span>इस</span> <span>दंपत्ति</span> <span>को</span> <span>रेडियोएक्टिविटी</span> <span>की</span> <span>खोज</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>भौतिकी</span> <span>का</span> <span>नोबल</span> <span>प्राइज़</span> <span>मिला</span> <span>।</span><span>१९११</span> <span>में</span> <span>उन्हें</span> <span>रसायन</span> <span>विज्ञान</span> <span>के</span> <span>क्षेत्र</span> <span>में</span> <span>रेडियम</span> <span>के</span> <span>शुद्धीकरण</span> (<span>आइसोलेशन</span> <span>ऑफ</span> <span>प्योर</span> <span>रेडियम</span>) <span>के</span> <span>लिए</span> <span>रसायन</span> <span>विज्ञान</span> <span>का</span> <span>नोबेल</span> <span>पुरस्कार</span> <span>भी</span> <span>मिला।</span> <span>विज्ञान</span> <span>की</span> <span>दो</span> <span>शाखाओं</span> <span>में</span> <span>नोबेल</span> <span>पुरस्कार</span> <span>से</span> <span>सम्मानित</span> <span>होने</span> <span>वाली</span> <span>वह</span> <span>पहली</span> <span>वैज्ञानिक</span> <span>हैं।</span> <span>उनकी</span> <span>दोनों</span> <span>पुत्रियों</span> <span>को</span> <span>भी</span> <span>नोबल</span> <span>प्राइज़</span> <span>मिल</span><span>।</span> <span>वास्तव</span> <span>में</span> <span>वह</span> <span>एक</span> <span>असाधारण</span> <span>महिला</span> <span>थी</span> <span>।</span> <span>मामा</span> <span>जी</span> <span>का</span> <span>कथन</span> <span>आज</span> <span>भी</span> <span>याद</span> <span>है</span> ...<span>देख</span> <span>लो</span> <span>इस</span> <span>महिला</span> <span>को</span> <span>।</span>mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-19208137425796658872009-04-06T07:14:00.000-07:002009-04-06T07:15:29.005-07:00खुला गगन सबके लिए है..........<span>उजाले</span> <span>को</span> <span>पी</span> <span>अपने</span> <span>को</span> <span>उर्जावान</span> <span>बना</span><br /><span>भटके</span> <span>लोगो</span> <span>को</span> <span>सही</span> <span>रास्ता</span> <span>दीखा</span><br /><span>उदास</span> <span>होकर</span> <span>तुझे</span> <span>जिंदगी</span> <span>को</span> <span>नही</span> <span>जीना</span><br /><span>खुला</span> <span>गगन</span> <span>सबके</span> <span>लिए</span> <span>है</span> , <span>कभी</span> <span>मायूश</span> <span>न</span> <span>होना</span><br /><span>तुम</span> <span>अच्छे</span> <span>हो</span>, <span>खुदा</span> <span>की</span> <span>इस</span> <span>बात</span> <span>को</span> <span>सदा</span> <span>याद</span> <span>रखना</span>mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-25433774970641613172009-03-30T08:59:00.000-07:002009-03-30T09:25:32.756-07:00बिट्टू ...बिट्टू उसका नाम है । बारहवीं क्लास में है । मेरा छोटा भाई है । उसकी मैथ काफी अच्छी है । मुझसे तो वह है काफी छोटा लेकिन हमलोग खुलकर बात करते है । मेहनत करने से खासकर पढ़ाई में कभी भी जी नही चुराता है । उसकी यही आदत मुझे काफी पसंद है । क्रिकेट का बड़ा शौकीन है .....बताता है की जब इंडिया २००३ के वर्ल्ड कप में हार गई थी तो काफी रोया था । अब उतनी दीवानगी नही है फ़िर भी काफी आंकडें जानता है । इसी तरह उसे फिल्मों का भी शौक है ....उसने लगभग <span>सारी </span>फिल्म देख ली है । कई बार तो हम लोग कई कलाकारों को नही पहचान पाते है तो उससे मदद लेनी पड़ती है ।<br />गाँव में उसकी छवि पढाकू किस्म के छात्र की तरह रही है । बहुत बातूनी भी है ...खैर दिल्ली में आने के बाद यह आदत काफी कम हो गई है । मैथ बनाने बैठता है तब उसे दुनिया का ख़याल नही रहता । पढ़ाई में न सही पर दुसरे कामों में काफी भुलक्कड़ किस्म का लड़का है । कोई काम कह देने पर हाँ कर बाद में भूल जाता है ।<br />आज तो उसने हद ही कर दी कुकर में चावल बैठाया और पानी डालना भूल मैथ लगाने बैठ गया बाद में चावल उतारा तो चावल राख हो चुका था । उम्मीद है की धीरे धीरे इस तरह की आदतें सुधर जायेगी । अभी ऐसा भी हो सकता है की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने की वजह से ये प्रोब्लम हो । कभी कभी एक थिंकर की तरह खोया रहता है । बाद में वापस आता है । ऐसा भी सुनाने में आया है की अपने मित्रों के बिच नेता टाइप की इमेज बना रखीहै ।<br />जो भी हो अभी उसको आई आई टी की तैयारी करवानी है । शुरुआत कर भी दिया है । उम्मीद है ....आगे जरुर कामयाब होगा ।mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-85390198460605279722009-03-28T05:48:00.000-07:002009-03-28T06:14:21.703-07:00हवस .....निगाहों में उसकी हवस दिखी<br />बच कर निकल आई<br />ये हवस तुक्छ बदन की ,<br />जिंदगी को तार तार करती रही<br /> वह खोजता रहा एक बदन<br />उस पर दाग लगाने की<br />याद आई वो रात तब रो पड़ी<br />निहागो में उसकी हवस दिखी<br /><br />मोहब्बत का वो चिराग<br />लगता है बुझ गया<br />जिससे दुनिया रोशन होनी थी<br />याद आई वो रात तब रो पड़ी<br />अब अंधेरे से लगता है डर<br />उजाले में भी नही मिला कही चैन<br />नही दीखता वो प्यार<br />सुना लगे सारा आसमान<br />मै थक कर बैठ गई<br />फ़िर याद आई वो रात<br />मै रो पड़ीmark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1988048484539144470.post-57112300687481228822009-03-24T04:00:00.000-07:002009-03-24T04:43:59.675-07:00नेता जी उर्फ़ डॉक्टर ...कभी कभी एर्थ का अनर्थ होने में देर नही लगता । हमारे एक डॉक्टर साब है । वह सचमुच के डॉक्टर तो नही है पर यह उनका निकनेम है । है तो वह नेता आदमी ...पर सिविल सेवा ने भी उनको काटा हुआ है । यानी तैयारी में भी लगे हुए है । मंडली में डॉक्टर और गुड्डू भाई के नाम से ही जाने जाते है । ओरिजिनल नेम सगीर नज्म नाम मात्र के लोग ही जानते है । उनकी आधी आधी चाय बड़ी फेमस है । किसी को कहते है ''आओ डॉक्टर आधी आधी चाय हो जाय '' उनको चाय के साथ सिगरेट जरुर चाहिए । एक हाथ में चाय और दुसरे हाथ में सिगरेट .... डेली का रूटीन । मै तो सेकेण्ड स्मोकर बन गया हूँ ...पर अब थोड़ा दूर ही रहता हूँ , जब वो कश खीच रहे होते है । कभी भी पुरी चाय नही लेते जैसे वह उनकी सौत हो ।<br />बहुत बातूनी भी है ....जो एक नेता टाइप के व्यक्ति को होना भी चाहिए । पर हद तब हो जाती है जब बोलते बोलते बहक जाते है ... तब एर्थ का अनर्थ हो जाता है । एक बार ऐसे ही एक व्यक्ति को जो उनका अच्छा फ्रेंड है ,को प्रकांड विद्वान् की जगह प्रखंड विद्वान् कह दिया और झेप गए । वैसे तो इस तरह की गलतियाँ सभी लोग करते है , पर हमारे नेताजी उर्फ़ गुड्डू भाई कुछ जयादा ही एक्सपर्ट है । इमोशन में आकर अपनी ही बातों में फंस जाते है .... बाद में उसपर विचार करते है । आलसी तो बिल्कुल नही है , कही भी जाने के लिए तैयार रहते है ,किसी की मदद करना तो उनका रोजमर्रा का काम है ।<br />एक दिन की बात है वह अपने एक मित्र के साथ रिक्से से जा रहे थे , उनकी बातों से रिक्सा वाला उनको डॉक्टर समझ लिया और कहा की डॉक्टर साब मुझ पर कृपा कर एक दवा बतला दीजिये , मुझसे रिक्सा नही चल रहा है । फ़िर इनको अपनी डॉक्टर गिरी दिखाने का मौका मिल गया । और वैसे ही कुछ दवा का नाम भी बतला दिए ।<br />रिक्सीवाला हो या खोमचेवाला , चायवाला हो या ठेलेवाला , इन सबसे उनकी खूब बनती है । जनाधार वाले नेताओं की यही तो निशानी होती है । मुझे इस बात का डर लगता है की अगर वो किसी बड़े पद पर चले गए और उनको मिडिया के सामने बोलने का मौका मिले तो क्या बोल देगे कुछ कहा नही जा सकता । कई ट्रेलर तो दिखला भी चुके है । यह भी सोचता हूँ की तब तक आदत सुधर जायेगी और ये बचपना ख़त्म हो जायेगी ।<br />उनके पास भाँती भाँती के जीव जंतु भी आते रहते है । मै अपने को एक जंतु ही मानता हूँ सो उनके मित्रों या परिचितों को जंतु कह दिया । एक दिन ऐसे ही एक जंतु के मुख से निकल गया की मेरे पास एक दांत और बतीस मुंह है ... आप सोच सकते है , उसकी क्या हालत हुई होगी । खैर अच्छे आदमी है ... मेरे अभिन्न मित्र है । हम साथ साथ रहते भी है । मेरे मन में कोई दुर्भावना भी नही है ।<br />कभी कभी कोमेडी भी करते है तब मै सोचता हूँ की बेकार में वह नेता गिरी के चक्कर में पड़े है , उन्हें लाफ्टर चैनल ज्वाइन कर लेना चाहिए । उम्र लगभग पैतीस की और वजन ५१ किलो की कामेडियन में जमेगे भी ।<br />मुझे लगता है की शायद जल्दी किसी बात का बुरा नही मानते इस लिए उनके बारे में इतना लिखने पर भी डर नही लगा ।mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com3