जीवन की इस धारा में बहते चले जाना कभी कभी बहुत अच्छा भी लगता है ..पर कभी लगता है की इसी तरह बिना किसी प्रतिरोध के बहते रहना अच्छा नहीं है . ऐसा लगता है की इनर्जी ख़त्म होती जा रही है . उसे समेटना होगा और फिर प्रतिरोध भी करना होगा .
....पर क्या करे इस बहाव का भी अपना मज़ा है भले ही कोई उपलब्धि नहीं है ..पर शान्ति बहुत है . क्या इस शान्ति को छोड़ कर आगे बढ़ जाऊं . हाँ यही सही रहेगा ..पर फिर शान्ति की लालच आ ही जाती है ....बहुत बुरी आदत है ..पर मजेदार आदत है ....आप ही बताओ ज़िन्दगी ऐसे चलती है भला ! मजे के लिए बहते जाना उचित है क्या ?