अपने उजालेपन के साथ चलता हूँ
कभी एक घने जंगल में
कभी अकेले घर में
एक दुनिया गुजर जाती है
दूसरा ढूढताहूँ
मेरा कुछ छुट जाता है
कुछ कीमती कुछ रद्दी
मै जीये जाता हूँ
एक अजनबी बनकर
कुदरत के चेहरों को देखकर
हर संवाद बयां करता हूँ
अपने उजालेपन के साथ चलता हूँ