अभी तक चेहरा जेहन में है । दिल बेचैन सा है ... कुछ सूझ नही रहा । पता नही ऐसा क्यों है । सोचता हूँ , आकर्षण किसी एक से बंधकर नही रहता । उसमे चंचलता कूट कूट कर भरी हुई है । पर यह चंचलता ठीक नही है । अब जाकर जाना ।
चंचलता आकर्षण में नहीं मन में है.. मन ही भटकता है मन ही बहता है और मन ही समर्पण करता है .. मन के अपने ही कायदे हैं ..तभी तो हर बार सब जानकार भी लगता है..की कुछ नहीं जाना ..
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चंचलता आकर्षण में नहीं मन में है..
मन ही भटकता है मन ही बहता है और मन ही समर्पण करता है ..
मन के अपने ही कायदे हैं ..तभी तो हर बार सब जानकार भी लगता है..की कुछ नहीं जाना ..
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