जीवन धारा

Tuesday, October 25, 2011

हंसों ना !

हंसों ना !:जीवन धारा :मार्कण्डेय रायका ब्लॉग-नवभारत टाइम्स
Posted by mark rai at 3:34 AM

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mark rai
कुछ ख़ास नही ....साधारण आदमी ......जो अपने को जानने की कोशीश कर रहा है । कुछ हद तक परेशान है ....नए रास्ते खोज रहा .....उसी क्रम में भारतीय प्रशासनिक सेवा का साक्षात्कार भी दिया । लिखने में मन लगता है ....... कुछ नया करना चाहता है ......जहाँ बाजारवाद न हो । ......जिंदगी अभावों में कट रही है .......इसका भी लुत्फ़ उठाता है ......सोचता है ....दुनिया से दो कदम पीछे रह गया .....पर कोई मलाल नही । लेखन का शायद दशमलव भी नही जानता पर ......हाथ मार रहा ....कोई राह नही दिखा पर .....चलते जा रहा है....
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