Friday, June 26, 2009

कुत्तों की यूनिटी खतरे में ...

आज, जब मै अपने रूम से निकला तो देखा की एक कुत्ता एक कूड़ा उठाने वाले पर जोर जोर से भौंक रहा है । वह बहुत जोर से भौक रहा था .....ऐसा लगा उसने अपनी पुरी शक्ति लगा दी हो । बेचारा कूडे वाला उसकी तो जान ही अटक गई थी । दो तिन और कुत्तें वही बैठे हुए थे । वे सब ऊँघ रहे थे । उनको कोई फर्क नही पड़ा की उनका एक साथी कुछ कर रहा है । मुझे यह देख घोर आर्श्चय हुआ । गाँव याद आ गया । गाँव में अगर किसी एक मुद्दें को लेकर कोई कुत्ता भौकना शुरू करता था तो मजाल है की उसके आस पास के कुत्तें चुप रहे । वे तुंरत यूनिटी दिखाते हुए साथ देने लगते ।
आज सोचता हूँ की इंसान शहरी होकर एक दुसरे के साथ मिलना जुलना ,दुःख दर्द में शरीक होना तो छोड़ ही चुका है .....इसका असर शहरी कुत्तों पर भी पड़ा है ,तभी तो वे उस यूनिटी को भूल चुके है जो कभी उनकी विरासत रह चुकी है । मै इसे सोचते सोचते आगे बढ़ गया ..... लड्डू चलो चुपचाप...... आगे अभी बहुत से बदलाव देखने है । एक दिन तो इंसानियत को भी ख़त्म होते देखना है .....तब मुझे लगा की ये तो एक छोटी सी बात है और मेरे कदम आगे बढ़ गए ।

Friday, June 19, 2009

एक बंगला बने न्यारा ......

बाहर कोई संगीत बज रहा है , ऐसा लगा
गीत चल रहा था ...
''एक बंगला बने न्यारा ......''
के एल सहगल साहब की आवाज मेंरात के करीब ग्यारह बजेयह गीत मेरे शरीर में सिहरन पैदा कर देता है
सारे जीवन का फल्स्फां इसी में दिखता है
मुझे शुरू से ही पुराने गानों की हवा नसीब हुई हैउन हवाओं में जो आनंद है ...वह नए गाने के झोकों में कहाँ
अतीत के भूले बिसरे गीत मुझे अपनी पुरानी तहजीब याद दिलाते हैसोचते सोचते आंखों में नमी छा जाती है