बाहर कोई संगीत बज रहा है , ऐसा लगा ।
गीत चल रहा था ...
''एक बंगला बने न्यारा ......''
के एल सहगल साहब की आवाज में । रात के करीब ग्यारह बजे । यह गीत मेरे शरीर में सिहरन पैदा कर देता है ।
सारे जीवन का फल्स्फां इसी में दिखता है ।
मुझे शुरू से ही पुराने गानों की हवा नसीब हुई है । उन हवाओं में जो आनंद है ...वह नए गाने के झोकों में कहाँ ।
अतीत के भूले बिसरे गीत मुझे अपनी पुरानी तहजीब याद दिलाते है । सोचते सोचते आंखों में नमी छा जाती है ।
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