Tuesday, April 14, 2009

साथी ....

एक बछडा । उसे काफी प्यार करता था । हरदम उछल कूद मचाता । मेरा दोस्त बन गया । बस्ता फेंक उसी से बात करता । आँखें बड़ी प्यारी थी । जब उसे लगता की मै स्कुल से आ गया तो मेरी ही ओर एकटक देखता रहता ।मै भी उसे निराश नही करता , भागकर उसके पास चला जाता । एक दिन रात में अचानक चला गया । भगवान् ने उसे वापस बुला लिया ।ऐसा लगा... मेरी दुनिया उजड़ गई । बचपन का एक मूक साथी बिछड़ गया । जिंदगी के इस भाग दौड़ में वह हमेशा याद आता है ।
(दोस्त आज भी तुझे हर पल याद करता हूँ )

3 comments:

जयंत - समर शेष said...

I can feel the pain.. I had "bachhadaa" at my home too... She is grown up now.

~Jayant

AMBRISH MISRA ( अम्बरीष मिश्रा ) said...

आप का ब्लॉग मैं पड़ा (padhaa)
अच्छा लगा
अच्छा लगा कलम का प्रेम
और प्रेम का कलम ........

महोदय , आप से निवेदन है कि अपनी अच्छी से अच्छी रचनाये ये मेरे ब्लॉग मंच पर दे |
इसपर मैं लिखने के लिए आप को amantrit करता हूँ
आशा है कि आप अपने सबद मंच पर देंगे जैसी ब्लोगेर्स आप को अधिक से अधिक पसंद कर सकते है
आप का ईमेल होता तो मैं आप के देखने से पहले ही आप को उसका सदस्य bana देता
आप कि कवितायेँ अच्छी लगी और उनको पड़कर और भी अच्छा
नमस्कार
आपका भाई
अम्बरीष मिश्रा

शोभना चौरे said...

bhut achha laga