Monday, March 30, 2009

बिट्टू ...

बिट्टू उसका नाम है । बारहवीं क्लास में है । मेरा छोटा भाई है । उसकी मैथ काफी अच्छी है । मुझसे तो वह है काफी छोटा लेकिन हमलोग खुलकर बात करते है । मेहनत करने से खासकर पढ़ाई में कभी भी जी नही चुराता है । उसकी यही आदत मुझे काफी पसंद है । क्रिकेट का बड़ा शौकीन है .....बताता है की जब इंडिया २००३ के वर्ल्ड कप में हार गई थी तो काफी रोया था । अब उतनी दीवानगी नही है फ़िर भी काफी आंकडें जानता है । इसी तरह उसे फिल्मों का भी शौक है ....उसने लगभग सारी फिल्म देख ली है । कई बार तो हम लोग कई कलाकारों को नही पहचान पाते है तो उससे मदद लेनी पड़ती है ।
गाँव में उसकी छवि पढाकू किस्म के छात्र की तरह रही है । बहुत बातूनी भी है ...खैर दिल्ली में आने के बाद यह आदत काफी कम हो गई है । मैथ बनाने बैठता है तब उसे दुनिया का ख़याल नही रहता । पढ़ाई में न सही पर दुसरे कामों में काफी भुलक्कड़ किस्म का लड़का है । कोई काम कह देने पर हाँ कर बाद में भूल जाता है ।
आज तो उसने हद ही कर दी कुकर में चावल बैठाया और पानी डालना भूल मैथ लगाने बैठ गया बाद में चावल उतारा तो चावल राख हो चुका था । उम्मीद है की धीरे धीरे इस तरह की आदतें सुधर जायेगी । अभी ऐसा भी हो सकता है की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने की वजह से ये प्रोब्लम हो । कभी कभी एक थिंकर की तरह खोया रहता है । बाद में वापस आता है । ऐसा भी सुनाने में आया है की अपने मित्रों के बिच नेता टाइप की इमेज बना रखीहै ।
जो भी हो अभी उसको आई आई टी की तैयारी करवानी है । शुरुआत कर भी दिया है । उम्मीद है ....आगे जरुर कामयाब होगा ।

Saturday, March 28, 2009

हवस .....

निगाहों में उसकी हवस दिखी
बच कर निकल आई
ये हवस तुक्छ बदन की ,
जिंदगी को तार तार करती रही
वह खोजता रहा एक बदन
उस पर दाग लगाने की
याद आई वो रात तब रो पड़ी
निहागो में उसकी हवस दिखी

मोहब्बत का वो चिराग
लगता है बुझ गया
जिससे दुनिया रोशन होनी थी
याद आई वो रात तब रो पड़ी
अब अंधेरे से लगता है डर
उजाले में भी नही मिला कही चैन
नही दीखता वो प्यार
सुना लगे सारा आसमान
मै थक कर बैठ गई
फ़िर याद आई वो रात
मै रो पड़ी

Tuesday, March 24, 2009

नेता जी उर्फ़ डॉक्टर ...

कभी कभी एर्थ का अनर्थ होने में देर नही लगता । हमारे एक डॉक्टर साब है । वह सचमुच के डॉक्टर तो नही है पर यह उनका निकनेम है । है तो वह नेता आदमी ...पर सिविल सेवा ने भी उनको काटा हुआ है । यानी तैयारी में भी लगे हुए है । मंडली में डॉक्टर और गुड्डू भाई के नाम से ही जाने जाते है । ओरिजिनल नेम सगीर नज्म नाम मात्र के लोग ही जानते है । उनकी आधी आधी चाय बड़ी फेमस है । किसी को कहते है ''आओ डॉक्टर आधी आधी चाय हो जाय '' उनको चाय के साथ सिगरेट जरुर चाहिए । एक हाथ में चाय और दुसरे हाथ में सिगरेट .... डेली का रूटीन । मै तो सेकेण्ड स्मोकर बन गया हूँ ...पर अब थोड़ा दूर ही रहता हूँ , जब वो कश खीच रहे होते है । कभी भी पुरी चाय नही लेते जैसे वह उनकी सौत हो ।
बहुत बातूनी भी है ....जो एक नेता टाइप के व्यक्ति को होना भी चाहिए । पर हद तब हो जाती है जब बोलते बोलते बहक जाते है ... तब एर्थ का अनर्थ हो जाता है । एक बार ऐसे ही एक व्यक्ति को जो उनका अच्छा फ्रेंड है ,को प्रकांड विद्वान् की जगह प्रखंड विद्वान् कह दिया और झेप गए । वैसे तो इस तरह की गलतियाँ सभी लोग करते है , पर हमारे नेताजी उर्फ़ गुड्डू भाई कुछ जयादा ही एक्सपर्ट है । इमोशन में आकर अपनी ही बातों में फंस जाते है .... बाद में उसपर विचार करते है । आलसी तो बिल्कुल नही है , कही भी जाने के लिए तैयार रहते है ,किसी की मदद करना तो उनका रोजमर्रा का काम है ।
एक दिन की बात है वह अपने एक मित्र के साथ रिक्से से जा रहे थे , उनकी बातों से रिक्सा वाला उनको डॉक्टर समझ लिया और कहा की डॉक्टर साब मुझ पर कृपा कर एक दवा बतला दीजिये , मुझसे रिक्सा नही चल रहा है । फ़िर इनको अपनी डॉक्टर गिरी दिखाने का मौका मिल गया । और वैसे ही कुछ दवा का नाम भी बतला दिए ।
रिक्सीवाला हो या खोमचेवाला , चायवाला हो या ठेलेवाला , इन सबसे उनकी खूब बनती है । जनाधार वाले नेताओं की यही तो निशानी होती है । मुझे इस बात का डर लगता है की अगर वो किसी बड़े पद पर चले गए और उनको मिडिया के सामने बोलने का मौका मिले तो क्या बोल देगे कुछ कहा नही जा सकता । कई ट्रेलर तो दिखला भी चुके है । यह भी सोचता हूँ की तब तक आदत सुधर जायेगी और ये बचपना ख़त्म हो जायेगी ।
उनके पास भाँती भाँती के जीव जंतु भी आते रहते है । मै अपने को एक जंतु ही मानता हूँ सो उनके मित्रों या परिचितों को जंतु कह दिया । एक दिन ऐसे ही एक जंतु के मुख से निकल गया की मेरे पास एक दांत और बतीस मुंह है ... आप सोच सकते है , उसकी क्या हालत हुई होगी । खैर अच्छे आदमी है ... मेरे अभिन्न मित्र है । हम साथ साथ रहते भी है । मेरे मन में कोई दुर्भावना भी नही है ।
कभी कभी कोमेडी भी करते है तब मै सोचता हूँ की बेकार में वह नेता गिरी के चक्कर में पड़े है , उन्हें लाफ्टर चैनल ज्वाइन कर लेना चाहिए । उम्र लगभग पैतीस की और वजन ५१ किलो की कामेडियन में जमेगे भी ।
मुझे लगता है की शायद जल्दी किसी बात का बुरा नही मानते इस लिए उनके बारे में इतना लिखने पर भी डर नही लगा ।

Monday, March 23, 2009

नामीबिया दिवस की यादें .....

बात उस समय की है जब मै हाई स्कूल में पढ़ रहा था । रेडियो पर सुना की आज नामीबिया दिवस है । समझ नही पाया । स्कूल में जब मैंने अपने भूगोल के टीचर से पूछा तो उन्होंने थोडी देर सोचा .... फ़िर बताया की नामीबिया का मतलब खुशी होता है ...यह दिवस विदेशों में खुशी को हासिल करने के निमित मनाया जाता है । मै संतुष्ट हो गया । करीब एक साल बाद मुझे पता चला की नामीबिया अफ्रीका का एक देश है और वह अपने स्थापना दिवस को नामीबिया दिवस के रूप में मनाता है । यह जानकर काफी हैरानी हुई..... अब सोचता हूँ ... एक न एक दिन तो पोल खुल ही जाती है सो बरगलाना छोड़ देना ही समझदारी है ... इज्जत का कबाडा तो अलग ही होता है । हम अपनी नजरों में ही गिर जाते है ।

Saturday, March 21, 2009

है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है .....

है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है ..... यह कथन मुझे रात में याद आ रहा था । रात में बिजली चली गई थी , कुछ पढ़ने का मन भी कर रहा था पर आलस की वजह से बाहर जाकर मोमबती लाने में कतरा रहा था । तभी दिमाग में यह बिचार आया और भाग कर मोमबती लेने चला गया । बिजली काफी देर तक नही आई .... इसी बिच मैंने कुछ पढ़ लिया ।

यह एक चोटी सी घटना है । पर इसका अर्थ काफी बड़ा है । जीवन में कई ऐसे मौके आते है जब हम अँधेरी रात का बहाना बना काम को छोड़ देते है । माना की समाज के सामने चुनौतिया ज्यादा है और समाधान कम । तो क्या हुआ ? यह कोई नई बात तो है नही .... हमेशा से ऐसा ही होता रहा है । आम आदमी की चिंता करने वाले काफी कम लोग है । गरीबों के आंसू पोछने वाले ज्यादातर नकली है ... तो क्या हुआ , आपको कौन मना कर रहा है की आप असली हमदर्द न बने । मै समझता हूँ की यह ख़ुद को धोखा देने वाली बात हुई । एक चिंगारी तो जलाई ही जा सकती है .... इसके लिए किसी का मुंह देखने की जरुरत नही है । परिस्थितिओं का रोना रो रो कर तो हम बरबाद हो चुके है । अब और नही ..... यह शब्द दिल से जुबान पर आना ही चाहिए ।

सोचता हूँ , अँधेरी रात का बहाना हम अपनी कमियों को छिपाने के लिए बनाते है .... औरो का तो नही पता पर मै इस काम में माहिर हूँ । ये बड़ी शर्म की बात है .... जीवन को अर्थहीन बनाने में इसका बड़ा योगदान रहा है । पर अब एक मकसद मिल गया है ..... दीपक तो जलाना ही पड़ेगा ।

इस सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछी है

हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है .......

यह सही है की घुटनों तक कीचड़ सना है .... भ्रष्टाचार का बोलबाला है । पर किसी न किसी को तो कीचड़ साफ़ करना ही पड़ेगा और वह हम ही क्यों न हो .... किसी ने रोका तो नही है न ....

Tuesday, March 17, 2009

सबकुछ याद है ......

मुझे अपने घर का आँगन व सामने की गली याद आती है ,
जहाँ कभी , किसी जमाने में मेले लगते थे ।
वो खिलौने याद आते है ,जो कभी बिका करते थे ।

छोटा सा घर , पर बहुत खुबसूरत ,
शाम का समय और छत पर टहलना ,
सबकुछ याद है ।

कुछ मिटटी और कुछ ईंट की वो इमारत ,
वो रास्ते जिनपर कभी दौडा करते थे ,
सबकुछ याद है ।

गंवई गाँव के लोग कितने भले लगते थे ,
सीधा सपाट जीवन , कही मिलावट नही ,
दूर - दूर तक खेत , जिनमे गाय -भैसों को चराना ,
वो गोबर की गंध व भैसों को चारा डालना ,
सबकुछ याद है ।

गाय की दही न सही , मट्ठे से ही काम चलाना ,
मटर की छीमी को गोहरे की आग में पकाना ,
सबकुछ याद है ।

वो सुबह सबेरे का अंदाज , गायों का रम्भाना ,
भागते हुए नहर पर जाना और पूरब में लालिमा छाना ,
सबकुछ याद है ।

बैलों की खनकती हुई घंटियाँ , दूर - दूर तक फैली हरियाली ,
वो पीपल का पेड़ और छुपकर जामुन पर चढ़ जाना ,
सबकुछ याद है ।

पाठशाला में किताबें खोलना और छुपकर भाग जाना ,
दोस्तों के साथ बागीचों में दिन बिताना ,
सबकुछ याद है ।

नानी से कहानी की जिद करना ,मामा से डांट खाना ,
नाना का खूब समझाना ,
मीठे की भेली को चुराना और चुपके से निकल जाना
सबकुछ याद है ।

अब लगता है , उन रास्तों से हटा कर कोई मुझे फेंक रहा है । वो दिन आज जब याद याते है तो मन को बेचैन कर देते है ...... अब कुछ यादें धुंधली होती जा रही है । फ़िर भी बहुत कुछ याद है ।

Friday, March 13, 2009

मेरा कुछ भी नही .....

मेरा अपना कुछ भी नही
सबकुछ तेरा
जीत भी , हार भी
जिंदगी के सारे बहार भी
मेरा तो अस्तित्व ही नही
आशा , निराशा कुछ भी नही
सबकुछ तेरा
मेरा अपना कुछ भी नही
आदत और इबादत
राहत या क़यामत
मेरा कुछ भी नही
सबकुछ तेरा

समझ न पाया ..

तुझे समझ ही ना पाया ,
मन क्यों उदास है ।
चला एक कदम ,
फ़िर पीछे मुद गया ।
अकेले में भी तुम ,
मुझे याद आते रहे ।
अब यादों को क्यों भुला दिया ,
समझ ही न पाया ।
मै लाचार जीवन जीता रहा ,
तेरी यादों को ,
अपना बना ही नही पाया
तुझे समझ ही ना पाया
न कोशिश कभी की समझने की ,
इसमे तेरा कोई दोष नही
बस तेरे ही ख्यालों में
हरदम खोया रहा ।
तुझे समझ ही ना पाया

Tuesday, March 10, 2009

होली के अलग रंग ..

होली एक रंगीन त्यौहार है .... हर गम को खा जानेवाला । खुशियाँ बरसाने वाला । फुल खिलाने वाला । मुस्कान लाने वाला । सपने दिखाने वाला । साल भर इन्तजार कराने वाला । आजादी और जिन्दादिली का प्रतिक ।
बचपन से मुझे होली का पर्व काफी पसंद है .... पर वो हरकते नही जो कुछ लोग करते है । शराब पीकर ऐसे इतराते है जैसे किसी पर बहुत बड़ा एहशान कर दिया हो । सच दारू ने तो होली का मजा ही ख़राब कर दिया है । ये भी सच है की सबकी अपनी जिंदगी है ,वो चाहे जैसे करे पर इसका मतलब यह तो कतई नही है की वो दूसरों का नुकशान कर सकते है । होली के दिन मुझे बाहर निकलने में डर लगता है और इसलिए नही की रंगों से नफ़रत है बल्कि बाहर पीकर चलते हुए लोगों से डर लगता है । वे उस हालत में कुछ भी कर सकते है .....बड़ा डर लगता है ।
मेरी होली साफ़ सुथरी होती है । कोई जबरदस्ती नही ..... प्यार का पर्व है भाई , जबरदस्ती का नही ।
गम को भुलाने का त्यौहार है न की दारु पीकर लुढ़क जाने का और गाली बकने का । ऐसी होली ..... तो होली है ही नही ,तमाशा है ।
इतना सुंदर त्यौहार है .... सुन्दरता गायब नही होनी चाहिए वरन कोई मतलब ही नही रह जायेगा । कुछ लोग इसके मूल उद्देश्य से वाकिफ नही है , उन्हें यह एहसाश कराना ही होगा । हम अपनी विरासत को यूँ ही बरबाद होते नही देख सकते ......

Monday, March 9, 2009

वो बचपन कहाँ गया ...

जब स्कूल में था, तो ये दुनिया बड़ी अजीब लगती थी . सबकुछ बड़ा ही अजीब लगता था . बाल मन में कई अजीब सवाल उठते थे ....उन सवालों के जबाब कोई देने वाला नही था । आज जब कई लोग उनका जबाब दे सकते है तो सवाल ही नही उठते । वो बचपन कहाँ गया ....वो इक्षाशक्ति और जानने की लालशा कहाँ गई ....भाई मै तो बड़ा ही परेशान हूँ । कहतें है अतीत को याद नही करना चाहिए लेकिन मै अपनी बचपन की यादों को कैसे छोड़ दूँ ? वो मस्त जीवन , वो मीठी यादें .....नही भूल सकता । गाँव की गलियों में घूमना । कोई चिंता फिकर नही .... डांट खाना और फ़िर वही करना ,आगा पीछे सोचने की कोई कोशिश नही । घर से ज्यादा दोस्तों की चिंता ....कौन क्या कर रहा है .....इसकी ख़बर रखना । आज कई यादें धुंधली हो गई है ....कुछ तो लुप्त हो गई है ....हाय रे मेमोरी । याद करने की कोशिश बेकार हो जाती । वो बचपन छोटा सफर था लेकिन अकेला सफर तो कतई नही था । आज तो मन भीड़ में भी अकेला लगता है .... ये दर्द बयां नही कर सकता । केवल महशुश कर सकता हूँ ।

Sunday, March 8, 2009

आखों में तेरी ही याद.....

खिलती धूप हो ,
या चांदनी रात
आखों में तेरी ही याद है
ये जिंदगी बस तेरी
हवाओं से पूछों
चारो तरफ़ तेरी ही खुसबू
फूलों से पूछों
जुल्फों को सवारूँ
पलकों से निहारूं
कितना हसीं ख्याल है
आंखों में तेरी ही याद है

Friday, March 6, 2009

जख्म

ये जख्म गहरा है
कोई मरहम दे दे ।
मेरी प्यास है बड़ी
कोई सागर दे दे ।
तिल तिल कर मर रहा
कोई एक उमर दे दे ।
अँधेरा गहरा रहा
कोई चाँद की नजर दे दे ।
ये जख्म गहरा है
कोई मरहम दे दे ।

खामोश नजरें ......

वो खामोश नजरें
अपलक निहारती
जीवन के तरंग
मन में उमंग
उमड़ पड़ती
नजरों का दोष नही
कुछ और है
हालात ऐसे
सहम जाता
आखें भी कराहती
खामोश नजरें
अपलक निहारती
कभी सुखी ,कभी भींगी
वो आँखें किसी की याद दिलाती
मै अनजान राही
देखता रहा
कुछ न समझा
वो आँखे पास बुलाती
खामोश नजरें
अपलक निहारती
आस पास एकदम शांत
कुछ न पता दिन या रात
आँखें भर आई
मोती की कुछ बूंदें
धरती पर टपक आई
वो खामोश नजरें
अपलक निहारती

..............

Wednesday, March 4, 2009

कभी शब्दों में गहराई है.....


कभी शब्दों में गहराई है
कभी उदासी छाई है
इस सुनी हुई बगिया में
कभी खुशबु , कभी पतझड़ ,
कभी बहार ,कभी आवाज
खिलखिलाती आई है
चंचल तितली, मस्त पवन
शीतल जल ,चहकता मन ,
ये सब देख आस भर आई है
हमें अंधियारा उजाला लगे
शाम भी अब सबेरा लगे
जबसे एक परी
इस उजड़ी बगियाँ में आई है
कोमल कोमल स्पर्श उसके
अब दुःख भी सुख लगने लगे
हर जगह ऐसी खुशी छाई है

एक लम्हा गुजर गया....


एक लम्हा गुजर गया
तेरी यादों में कही खो गया
ये क्या ? तेरी कदमों की

आहट सुन वह डर गया

तेरे कुचे से निकल
एक मुसाफिर किधर गया
एक लम्हा गुजर गया

धुप में जलता बदन
जरा सी छाँव को तलाशता मन
पसीने से लथपथ
दर - दर भटक कर

तुझे घर घर तलाशकर

एक मुसाफिर भटक गया
एक लम्हा गुजर गया

Tuesday, March 3, 2009

तुम जो कहो .......



तुम जो कहो
उसे प्रकाशित कर दूँ
अपने सर्वस्व को
तुम पर न्योछावर कर दूँ
अपनी समस्त ऊर्जा को
विश्रित कर दूँ
तुम जो कहो
अपने स्पर्श से
तुझे उष्मित कर दूँ

तेरे दर्द को ओढ़कर
ख़ुद को
धन्य कर दूँ
तुम जो कहो
तुझ पर जीवन
अर्पण कर दूँ

तेरे चेहरे का गुलाल
और लाल कर दूँ
दमकते सूरज को
निहाल कर दूँ
तुम जो कहो
दिन हो या रात
धुप हो या छांव
तेरे कदमों में
सर रख दूँ
तुम जो कहो

एक दिन .......

मैं जानता था
एक दिन
तुम्हे आना है मेरे पास
तो अब ये शर्म कैसी
तुम्हारा ख़त
हम न खोलेगे कभी
बंद रखेगें
सारे दिल के दरवाजें
तो अब ये वेवाफाई कैसी

Monday, March 2, 2009

हल चलाता हुआ मंगरू मुझसे अच्छा है ......

सोचता हूँ , हल चलाता हुआ मंगरू मुझसे अच्छा है । उसे अपने काम का पता तो है न । वह मन से कर भी रहा है ।
मुझे तो बहुत कुछ पता ही नही और कुछ - कुछ पता है भी तो काम नही करता । मन से तो बिल्कुल ही नही ।
अवसर की आहट कई बार सुन कर भी अनसुना कर चुका हूँ , जिसका खामियाजा आजतक भुगत रहा हूँ । लगता है , कोई भी मंडप मेरे लिए नही सजेगा । मेरा कभी भी अभिषेक नही होगा । मै अकेला ही रह जाऊँगा । रातों में चाँदनी नसीब नही होगी ।
कोई राह नही कोई , कोई मंजील नही दिखती , गोल गोल घूम रहा हूँ । लगता है , आगे बढ़ रहा हूँ ।
क्या करू ,निर्दोष हिरणों को मारकर सेज नही सजा सकता ,
सो दुनिया से दो कदम पीछे रह गया ।
बछडे का हक़ मारकर पंचामृत नही बना सकता ,
सो प्यासा रह गया ।
चंदन तरु काटकर तिलक नही लगा सकता ,
सो आगे नही जा पाया ।