मुझे अपने घर का आँगन व सामने की गली याद आती है ,
जहाँ कभी , किसी जमाने में मेले लगते थे ।
वो खिलौने याद आते है ,जो कभी बिका करते थे ।
छोटा सा घर , पर बहुत खुबसूरत ,
शाम का समय और छत पर टहलना ,
सबकुछ याद है ।
कुछ मिटटी और कुछ ईंट की वो इमारत ,
वो रास्ते जिनपर कभी दौडा करते थे ,
सबकुछ याद है ।
गंवई गाँव के लोग कितने भले लगते थे ,
सीधा सपाट जीवन , कही मिलावट नही ,
दूर - दूर तक खेत , जिनमे गाय -भैसों को चराना ,
वो गोबर की गंध व भैसों को चारा डालना ,
सबकुछ याद है ।
गाय की दही न सही , मट्ठे से ही काम चलाना ,
मटर की छीमी को गोहरे की आग में पकाना ,
सबकुछ याद है ।
वो सुबह सबेरे का अंदाज , गायों का रम्भाना ,
भागते हुए नहर पर जाना और पूरब में लालिमा छाना ,
सबकुछ याद है ।
बैलों की खनकती हुई घंटियाँ , दूर - दूर तक फैली हरियाली ,
वो पीपल का पेड़ और छुपकर जामुन पर चढ़ जाना ,
सबकुछ याद है ।
पाठशाला में किताबें खोलना और छुपकर भाग जाना ,
दोस्तों के साथ बागीचों में दिन बिताना ,
सबकुछ याद है ।
नानी से कहानी की जिद करना ,मामा से डांट खाना ,
नाना का खूब समझाना ,
मीठे की भेली को चुराना और चुपके से निकल जाना
सबकुछ याद है ।
अब लगता है , उन रास्तों से हटा कर कोई मुझे फेंक रहा है । वो दिन आज जब याद याते है तो मन को बेचैन कर देते है ...... अब कुछ यादें धुंधली होती जा रही है । फ़िर भी बहुत कुछ याद है ।
2 comments:
"अब लगता है , उन रास्तों से हटा कर कोई मुझे फेंक रहा है । वो दिन आज जब याद याते है तो मन को बेचैन कर देते है ......"
यही तो बचपन और बड़े में अंतर है.........................
बड़े एक-दूसरे की जड़ काटने में ही व्यस्त रहते हैं और आनंद ढूढ़ते हैं तो बच्चे एक- दूसरे से मिलजुल कर ही चलते हैं और आनंद प्राप्त करते है.
सुन्दर अभिव्यक्ति की सराहना किन शब्दों में की जाय, समझ से परे है.
एक बार पुनः बधाई.
Ek kavita mereebhee padh lena.."wo ghar bulata hai.."
Aapne ise likh wahee ek puraanee yaadonkee seher karwa dee.....
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