Sunday, February 8, 2009

एक अजब खामोश धड़कन
शुन्य में भी आती जीसकी आवाज
खोजता हूँ हर तरफ़
दर्द का पता नही
हर रोज सवाल करता हूँ
समाधान पाता नही
एक अजब खामोश धड़कन
वीचलीतहो रहा मन
मन वीराने में घुलकर खो गया
लगा राह में कही पर गुम हो गया
बेजान आखें देखती रही
वह आखों से ओझल हो गया
एक सुनसान घर
देखता रहा एकटक
अंदर से आती आवाज
वो अजीब अँधेरी रात
मै गया सहम
एक अजब खामोश धड़कन

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