Friday, December 4, 2009
मजे के लिए बहते जाना उचित है क्या ?
....पर क्या करे इस बहाव का भी अपना मज़ा है भले ही कोई उपलब्धि नहीं है ..पर शान्ति बहुत है . क्या इस शान्ति को छोड़ कर आगे बढ़ जाऊं . हाँ यही सही रहेगा ..पर फिर शान्ति की लालच आ ही जाती है ....बहुत बुरी आदत है ..पर मजेदार आदत है ....आप ही बताओ ज़िन्दगी ऐसे चलती है भला ! मजे के लिए बहते जाना उचित है क्या ?
Saturday, October 24, 2009
छठ पूजा और बचपन
दिल करता है .. चला जाऊं और डोला लेकर घाट पर निकल जाऊं । लोगों से खूब बातें करूँ । सुबह अर्घ्य के बाद ठेकुए का आनंद उठाऊं । प्रसाद के रूप में कई फलों का स्वाद ....और नारियल के रस की यादें ताज़ा हो रही है । सुबह में घाट पर मम्मी के लिए चाय ले जाना , उनका ध्यान रखना और उनका आर्शीवाद देना सब याद आता है ।
Friday, September 4, 2009
जीवन का अर्थ .....
इतिहास उनको याद करता है ,जो दूसरो के लिए कुछ करते हुए मर गए ....उन्ही की स्मृति दिमाग में कौतुहल पैदा करती है ,न की उनकी जिन्होंने अपना जीवन पैसे कमाने में और दूसरो को चूसने में लगा दिया । आज पैसे का बोलबाला है ..सही भी है , पर एक हद तक ....मूर्खों की तरह केवल पैसे लूटने के चक्कर में हम जीवन का मूल उद्देश्य भूल जाते है ....जीवन के अंत में कुछ हासिल नही कर पाते ।
कुछ लोग जन्म लेते है ..रूपया कमाते है और परलोक की यात्रा पर निकल जाते है ..ऐसे लोगों को इतिहास याद नही करता .....इतिहास ऐसे लोगों को याद करता है जिन्होंने इस जगत को कुछ दिया हो । हम उन महानुभावों को याद करते है ,जिन्होंने स्वार्थ की उपासना नही की .............. ।
Saturday, July 4, 2009
.हमारा समाज अब आखिरी साँसे ले रहा है....
ऐसा प्रतीत होता है ....हमारा समाज अब आखिरी साँसे ले रहा है । कुछ ही दिनों में उसकी मौत होने वाली है ...और उसके बाद हम जानवरों की तरह रहेगे । सामजिक समरसता ख़त्म होने के कगार पर है ..एक दुसरे को पीछे छोड़ना ही सभ्यता का प्रतिक हो गया है । मुझे अभी भी उम्मीद है की अन्तिम साँसे ले रहा समाज को कोई संजीवनी मिल जायेगी ।ऐसा भी हो सकता है ...मै ज्यादा आशावादी हो गया हूँ । कुछ भी हो उम्मीद का दामन तो छोड़ा नही जा सकता ...यह हमारी भी जिम्मेदारी है । संजीवनी हम भी ढूंढ़ सकते है ।
Wednesday, July 1, 2009
लड्डू .....
मैंने कई बच्चों के नाम भी इसी मिठाई पर रखे हुए देखे है । वैसे तो मुझे लड्डू खाना अच्छा लगता है ...पर इतना नहीं की इसमे डूबा ही रहूँ । इतना जरुर है की खा लेता हूँ ....पर कुछ दिनों से लड्डू शब्द मुझे बहुत अच्छा लगने लगा है .....लगता है ...इससे ज्यादा मिठास तो दुनिया के दुसरे किसी शब्द में नही हो सकता । पहले तो कभी ऐसा नही हुआ ....आजकल इसमे इतनी मिठास कहाँ से आ गई ?.....या लड्डू के प्रति मेरा नजरिया बदल गया ....कहीं कुछ हुआ तो नहीं .....कोई घटना तो नहीं घटी ...जिसकी वजह से लड्डू इतना प्यारा हो गया ....पता नहीं मुझे तो ऐसा कुछ याद नहीं है .....
पहले सोचता था कैसा नाम है ....लड्डू !ऐसा लगता था जैसे किसी बुद्धू आदमी की प्रतिमा लड्डू शब्द में छिपी हुई है ....साफ़ शब्दों में कहें तो लड्डू शब्द अनाड़ी का पर्याय लगता था । ....तो आज क्या हुआ ?...मेरे जिंदगी का सबसे कीमती पल ....और लड्डू की मिठास ने मुझे शायद बहुत ही कूल कर दिया । लड्डू का ही प्रताप है ...अब गुस्सा नही आता ....मुस्कराहट बढ़ गई है .....हर जगह मिठास ही दिख रही है ....क्या कहूँ? लड्डू ने तो मुझे बिल्कुल बदल दिया है । अब तो सपनो में भी ......
जब लड्डू शब्द सुनता हूँ तो ...सारे शरीर में सिहरन पैदा होती है ....एनर्जी दुगुनी हो जाती है ।
मन ही मन कहता हूँ .... मेरे लड्डू तू तो बदल गया रे .....लड्डू शब्द सुनने के लिए बेचैन रहता हूँ ....कास !मेरा नाम लड्डू ही होता । ऐसा लगता है ...मेरा मन लड्डू से ही जुड़ गया है ...इसकी मिठास हर जगह फैली हुई है ....अब यह मेरे लिए जिंदगी का मकसद बन गया है .... खाने वाला लड्डू तो सिर्फ़ प्रतीकात्मक है .....मेरा लड्डू तो मन की गहराइयों से निकला है ....उसे केवल महशुश ही किया जा सकता है ।
मेरे साथ कुछ अजीब हो रहा है ....लड्डू शब्द सुनना ही पहली प्राथमिकता बन गई है ......लड्डू को सुनते ही सारी बेचैनी ख़त्म हो जाती है ...मन को बहुत ही शुकून मिलता है ......ऐ मेरे लड्डू! सुनो ! जिंदगी में ऐसे ही मिठास भरते रहना ....
Friday, June 26, 2009
कुत्तों की यूनिटी खतरे में ...
आज सोचता हूँ की इंसान शहरी होकर एक दुसरे के साथ मिलना जुलना ,दुःख दर्द में शरीक होना तो छोड़ ही चुका है .....इसका असर शहरी कुत्तों पर भी पड़ा है ,तभी तो वे उस यूनिटी को भूल चुके है जो कभी उनकी विरासत रह चुकी है । मै इसे सोचते सोचते आगे बढ़ गया ..... लड्डू चलो चुपचाप...... आगे अभी बहुत से बदलाव देखने है । एक दिन तो इंसानियत को भी ख़त्म होते देखना है .....तब मुझे लगा की ये तो एक छोटी सी बात है और मेरे कदम आगे बढ़ गए ।
Friday, June 19, 2009
एक बंगला बने न्यारा ......
गीत चल रहा था ...
''एक बंगला बने न्यारा ......''
के एल सहगल साहब की आवाज में । रात के करीब ग्यारह बजे । यह गीत मेरे शरीर में सिहरन पैदा कर देता है ।
सारे जीवन का फल्स्फां इसी में दिखता है ।
मुझे शुरू से ही पुराने गानों की हवा नसीब हुई है । उन हवाओं में जो आनंद है ...वह नए गाने के झोकों में कहाँ ।
अतीत के भूले बिसरे गीत मुझे अपनी पुरानी तहजीब याद दिलाते है । सोचते सोचते आंखों में नमी छा जाती है ।
Thursday, May 7, 2009
...अभी तुमने मुझे जाना ही नही ।
इरादा तो इतना है की कब्र से भी निकल आऊं ।
पर केवल उजाले के लिए । यही एक चीज मुझे कब्र से भी बाहर निकाल सकती है ।
मजाक नही कर रहा ....अभी तुमने मुझे जाना ही नही ।
Wednesday, April 29, 2009
एक सपने के टूट जाने से जिंदगी ख़त्म नही हो जाती ....
कुछ ख़त्म हो गया तो क्या हुआ । बहुत कुछ अभी बाकी है , मेरे दोस्त .....कहाँ खो गए ।
दोस्त ! एक सपने के टूट जाने से जिंदगी ख़त्म नही हो जाती । बहुत से सपने अभी भी बुने
जा सकते है । टूटने दो यार एक सपने को ..वह टूटने के लिए ही था ।
हर शाम के बाद सुबह , हर सुबह के बाद शाम । यह तो प्रकृति का नियम है । अभी शाम है ...
मेरे दोस्त । सुबह का इन्तजार करो । आनेवाला ही है । फ़िर डर कैसा ? जम कर करो ,इन्तजार ।
क्या कहू दोस्त ....जीवन में अँधेरा भी तो जरुरी है । तभी तो उजाले का प्रश्फुटन होगा ।
अंधेरे के बाद का उजाला ज्यादा मीठा होता है । चख कर तो देखो ।
Tuesday, April 14, 2009
साथी ....
(दोस्त आज भी तुझे हर पल याद करता हूँ )
Thursday, April 9, 2009
मैडम क्युरी .....
मैडम क्युरी विख्यात विख्यात भौतिकविद और रसायनशास्त्री थी। पोलैंड के वारसा नगर में जन्मी मेरी ने रेडियम की खोज की थी।वारसा में महिलायों को उच्च शिक्षा की अनुमति नही थी । अतः मेरी ने चोरी छिपे उच्च शिक्षा प्राप्त की । पेरिस विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर बनने वाली पहली महिला होने का गौरव भी मिला। यहीं उनकी मुलाक़ात पियरे क्यूरी से हुई जिनसे उनकी बाद में शादी भी हो गई । इन दोनों ने मिल कर पोलोनियम की खोज की । इसके बाद मैडम क्युरी ने रेडियम की भी खोज की । १९०३ में इस दंपत्ति को रेडियोएक्टिविटी की खोज के लिए भौतिकी का नोबल प्राइज़ मिला ।१९११ में उन्हें रसायन विज्ञान के क्षेत्र में रेडियम के शुद्धीकरण (आइसोलेशन ऑफ प्योर रेडियम) के लिए रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार भी मिला। विज्ञान की दो शाखाओं में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली वह पहली वैज्ञानिक हैं। उनकी दोनों पुत्रियों को भी नोबल प्राइज़ मिल। वास्तव में वह एक असाधारण महिला थी । मामा जी का कथन आज भी याद है ...देख लो इस महिला को ।
Monday, April 6, 2009
खुला गगन सबके लिए है..........
भटके लोगो को सही रास्ता दीखा
उदास होकर तुझे जिंदगी को नही जीना
खुला गगन सबके लिए है , कभी मायूश न होना
तुम अच्छे हो, खुदा की इस बात को सदा याद रखना
Monday, March 30, 2009
बिट्टू ...
गाँव में उसकी छवि पढाकू किस्म के छात्र की तरह रही है । बहुत बातूनी भी है ...खैर दिल्ली में आने के बाद यह आदत काफी कम हो गई है । मैथ बनाने बैठता है तब उसे दुनिया का ख़याल नही रहता । पढ़ाई में न सही पर दुसरे कामों में काफी भुलक्कड़ किस्म का लड़का है । कोई काम कह देने पर हाँ कर बाद में भूल जाता है ।
आज तो उसने हद ही कर दी कुकर में चावल बैठाया और पानी डालना भूल मैथ लगाने बैठ गया बाद में चावल उतारा तो चावल राख हो चुका था । उम्मीद है की धीरे धीरे इस तरह की आदतें सुधर जायेगी । अभी ऐसा भी हो सकता है की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने की वजह से ये प्रोब्लम हो । कभी कभी एक थिंकर की तरह खोया रहता है । बाद में वापस आता है । ऐसा भी सुनाने में आया है की अपने मित्रों के बिच नेता टाइप की इमेज बना रखीहै ।
जो भी हो अभी उसको आई आई टी की तैयारी करवानी है । शुरुआत कर भी दिया है । उम्मीद है ....आगे जरुर कामयाब होगा ।
Saturday, March 28, 2009
हवस .....
बच कर निकल आई
ये हवस तुक्छ बदन की ,
जिंदगी को तार तार करती रही
वह खोजता रहा एक बदन
उस पर दाग लगाने की
याद आई वो रात तब रो पड़ी
निहागो में उसकी हवस दिखी
मोहब्बत का वो चिराग
लगता है बुझ गया
जिससे दुनिया रोशन होनी थी
याद आई वो रात तब रो पड़ी
अब अंधेरे से लगता है डर
उजाले में भी नही मिला कही चैन
नही दीखता वो प्यार
सुना लगे सारा आसमान
मै थक कर बैठ गई
फ़िर याद आई वो रात
मै रो पड़ी
Tuesday, March 24, 2009
नेता जी उर्फ़ डॉक्टर ...
बहुत बातूनी भी है ....जो एक नेता टाइप के व्यक्ति को होना भी चाहिए । पर हद तब हो जाती है जब बोलते बोलते बहक जाते है ... तब एर्थ का अनर्थ हो जाता है । एक बार ऐसे ही एक व्यक्ति को जो उनका अच्छा फ्रेंड है ,को प्रकांड विद्वान् की जगह प्रखंड विद्वान् कह दिया और झेप गए । वैसे तो इस तरह की गलतियाँ सभी लोग करते है , पर हमारे नेताजी उर्फ़ गुड्डू भाई कुछ जयादा ही एक्सपर्ट है । इमोशन में आकर अपनी ही बातों में फंस जाते है .... बाद में उसपर विचार करते है । आलसी तो बिल्कुल नही है , कही भी जाने के लिए तैयार रहते है ,किसी की मदद करना तो उनका रोजमर्रा का काम है ।
एक दिन की बात है वह अपने एक मित्र के साथ रिक्से से जा रहे थे , उनकी बातों से रिक्सा वाला उनको डॉक्टर समझ लिया और कहा की डॉक्टर साब मुझ पर कृपा कर एक दवा बतला दीजिये , मुझसे रिक्सा नही चल रहा है । फ़िर इनको अपनी डॉक्टर गिरी दिखाने का मौका मिल गया । और वैसे ही कुछ दवा का नाम भी बतला दिए ।
रिक्सीवाला हो या खोमचेवाला , चायवाला हो या ठेलेवाला , इन सबसे उनकी खूब बनती है । जनाधार वाले नेताओं की यही तो निशानी होती है । मुझे इस बात का डर लगता है की अगर वो किसी बड़े पद पर चले गए और उनको मिडिया के सामने बोलने का मौका मिले तो क्या बोल देगे कुछ कहा नही जा सकता । कई ट्रेलर तो दिखला भी चुके है । यह भी सोचता हूँ की तब तक आदत सुधर जायेगी और ये बचपना ख़त्म हो जायेगी ।
उनके पास भाँती भाँती के जीव जंतु भी आते रहते है । मै अपने को एक जंतु ही मानता हूँ सो उनके मित्रों या परिचितों को जंतु कह दिया । एक दिन ऐसे ही एक जंतु के मुख से निकल गया की मेरे पास एक दांत और बतीस मुंह है ... आप सोच सकते है , उसकी क्या हालत हुई होगी । खैर अच्छे आदमी है ... मेरे अभिन्न मित्र है । हम साथ साथ रहते भी है । मेरे मन में कोई दुर्भावना भी नही है ।
कभी कभी कोमेडी भी करते है तब मै सोचता हूँ की बेकार में वह नेता गिरी के चक्कर में पड़े है , उन्हें लाफ्टर चैनल ज्वाइन कर लेना चाहिए । उम्र लगभग पैतीस की और वजन ५१ किलो की कामेडियन में जमेगे भी ।
मुझे लगता है की शायद जल्दी किसी बात का बुरा नही मानते इस लिए उनके बारे में इतना लिखने पर भी डर नही लगा ।
Monday, March 23, 2009
नामीबिया दिवस की यादें .....
Saturday, March 21, 2009
है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है .....
है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है ..... यह कथन मुझे रात में याद आ रहा था । रात में बिजली चली गई थी , कुछ पढ़ने का मन भी कर रहा था पर आलस की वजह से बाहर जाकर मोमबती लाने में कतरा रहा था । तभी दिमाग में यह बिचार आया और भाग कर मोमबती लेने चला गया । बिजली काफी देर तक नही आई .... इसी बिच मैंने कुछ पढ़ लिया ।
यह एक चोटी सी घटना है । पर इसका अर्थ काफी बड़ा है । जीवन में कई ऐसे मौके आते है जब हम अँधेरी रात का बहाना बना काम को छोड़ देते है । माना की समाज के सामने चुनौतिया ज्यादा है और समाधान कम । तो क्या हुआ ? यह कोई नई बात तो है नही .... हमेशा से ऐसा ही होता रहा है । आम आदमी की चिंता करने वाले काफी कम लोग है । गरीबों के आंसू पोछने वाले ज्यादातर नकली है ... तो क्या हुआ , आपको कौन मना कर रहा है की आप असली हमदर्द न बने । मै समझता हूँ की यह ख़ुद को धोखा देने वाली बात हुई । एक चिंगारी तो जलाई ही जा सकती है .... इसके लिए किसी का मुंह देखने की जरुरत नही है । परिस्थितिओं का रोना रो रो कर तो हम बरबाद हो चुके है । अब और नही ..... यह शब्द दिल से जुबान पर आना ही चाहिए ।
सोचता हूँ , अँधेरी रात का बहाना हम अपनी कमियों को छिपाने के लिए बनाते है .... औरो का तो नही पता पर मै इस काम में माहिर हूँ । ये बड़ी शर्म की बात है .... जीवन को अर्थहीन बनाने में इसका बड़ा योगदान रहा है । पर अब एक मकसद मिल गया है ..... दीपक तो जलाना ही पड़ेगा ।
इस सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछी है
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है .......
यह सही है की घुटनों तक कीचड़ सना है .... भ्रष्टाचार का बोलबाला है । पर किसी न किसी को तो कीचड़ साफ़ करना ही पड़ेगा और वह हम ही क्यों न हो .... किसी ने रोका तो नही है न ....
Tuesday, March 17, 2009
सबकुछ याद है ......
जहाँ कभी , किसी जमाने में मेले लगते थे ।
वो खिलौने याद आते है ,जो कभी बिका करते थे ।
छोटा सा घर , पर बहुत खुबसूरत ,
शाम का समय और छत पर टहलना ,
सबकुछ याद है ।
कुछ मिटटी और कुछ ईंट की वो इमारत ,
वो रास्ते जिनपर कभी दौडा करते थे ,
सबकुछ याद है ।
गंवई गाँव के लोग कितने भले लगते थे ,
सीधा सपाट जीवन , कही मिलावट नही ,
दूर - दूर तक खेत , जिनमे गाय -भैसों को चराना ,
वो गोबर की गंध व भैसों को चारा डालना ,
सबकुछ याद है ।
गाय की दही न सही , मट्ठे से ही काम चलाना ,
मटर की छीमी को गोहरे की आग में पकाना ,
सबकुछ याद है ।
वो सुबह सबेरे का अंदाज , गायों का रम्भाना ,
भागते हुए नहर पर जाना और पूरब में लालिमा छाना ,
सबकुछ याद है ।
बैलों की खनकती हुई घंटियाँ , दूर - दूर तक फैली हरियाली ,
वो पीपल का पेड़ और छुपकर जामुन पर चढ़ जाना ,
सबकुछ याद है ।
पाठशाला में किताबें खोलना और छुपकर भाग जाना ,
दोस्तों के साथ बागीचों में दिन बिताना ,
सबकुछ याद है ।
नानी से कहानी की जिद करना ,मामा से डांट खाना ,
नाना का खूब समझाना ,
मीठे की भेली को चुराना और चुपके से निकल जाना
सबकुछ याद है ।
अब लगता है , उन रास्तों से हटा कर कोई मुझे फेंक रहा है । वो दिन आज जब याद याते है तो मन को बेचैन कर देते है ...... अब कुछ यादें धुंधली होती जा रही है । फ़िर भी बहुत कुछ याद है ।
Friday, March 13, 2009
मेरा कुछ भी नही .....
सबकुछ तेरा
जीत भी , हार भी
जिंदगी के सारे बहार भी
मेरा तो अस्तित्व ही नही
आशा , निराशा कुछ भी नही
सबकुछ तेरा
मेरा अपना कुछ भी नही
आदत और इबादत
राहत या क़यामत
मेरा कुछ भी नही
सबकुछ तेरा
समझ न पाया ..
मन क्यों उदास है ।
चला एक कदम ,
फ़िर पीछे मुद गया ।
अकेले में भी तुम ,
मुझे याद आते रहे ।
अब यादों को क्यों भुला दिया ,
समझ ही न पाया ।
मै लाचार जीवन जीता रहा ,
तेरी यादों को ,
अपना बना ही नही पाया
तुझे समझ ही ना पाया
न कोशिश कभी की समझने की ,
इसमे तेरा कोई दोष नही
बस तेरे ही ख्यालों में
हरदम खोया रहा ।
तुझे समझ ही ना पाया
Tuesday, March 10, 2009
होली के अलग रंग ..
बचपन से मुझे होली का पर्व काफी पसंद है .... पर वो हरकते नही जो कुछ लोग करते है । शराब पीकर ऐसे इतराते है जैसे किसी पर बहुत बड़ा एहशान कर दिया हो । सच दारू ने तो होली का मजा ही ख़राब कर दिया है । ये भी सच है की सबकी अपनी जिंदगी है ,वो चाहे जैसे करे पर इसका मतलब यह तो कतई नही है की वो दूसरों का नुकशान कर सकते है । होली के दिन मुझे बाहर निकलने में डर लगता है और इसलिए नही की रंगों से नफ़रत है बल्कि बाहर पीकर चलते हुए लोगों से डर लगता है । वे उस हालत में कुछ भी कर सकते है .....बड़ा डर लगता है ।
मेरी होली साफ़ सुथरी होती है । कोई जबरदस्ती नही ..... प्यार का पर्व है भाई , जबरदस्ती का नही ।
गम को भुलाने का त्यौहार है न की दारु पीकर लुढ़क जाने का और गाली बकने का । ऐसी होली ..... तो होली है ही नही ,तमाशा है ।
इतना सुंदर त्यौहार है .... सुन्दरता गायब नही होनी चाहिए वरन कोई मतलब ही नही रह जायेगा । कुछ लोग इसके मूल उद्देश्य से वाकिफ नही है , उन्हें यह एहसाश कराना ही होगा । हम अपनी विरासत को यूँ ही बरबाद होते नही देख सकते ......
Monday, March 9, 2009
वो बचपन कहाँ गया ...
Sunday, March 8, 2009
आखों में तेरी ही याद.....
या चांदनी रात
आखों में तेरी ही याद है ।
ये जिंदगी बस तेरी
हवाओं से पूछों
चारो तरफ़ तेरी ही खुसबू
फूलों से पूछों
जुल्फों को सवारूँ
पलकों से निहारूं
कितना हसीं ख्याल है ।
आंखों में तेरी ही याद है ।
Friday, March 6, 2009
जख्म
कोई मरहम दे दे ।
मेरी प्यास है बड़ी
कोई सागर दे दे ।
तिल तिल कर मर रहा
कोई एक उमर दे दे ।
अँधेरा गहरा रहा
कोई चाँद की नजर दे दे ।
ये जख्म गहरा है
कोई मरहम दे दे ।
खामोश नजरें ......
अपलक निहारती
जीवन के तरंग
मन में उमंग
उमड़ पड़ती
नजरों का दोष नही
कुछ और है
हालात ऐसे
सहम जाता
आखें भी कराहती
अपलक निहारती
कभी सुखी ,कभी भींगी
वो आँखें किसी की याद दिलाती
मै अनजान राही
देखता रहा
कुछ न समझा
वो आँखे पास बुलाती
खामोश नजरें
अपलक निहारती
आस पास एकदम शांत
कुछ न पता दिन या रात
आँखें भर आई
मोती की कुछ बूंदें
धरती पर टपक आई
वो खामोश नजरें
अपलक निहारती
..............
Wednesday, March 4, 2009
कभी शब्दों में गहराई है.....
कभी शब्दों में गहराई है
कभी उदासी छाई है
इस सुनी हुई बगिया में
कभी खुशबु , कभी पतझड़ ,
कभी बहार ,कभी आवाज
खिलखिलाती आई है
चंचल तितली, मस्त पवन
शीतल जल ,चहकता मन ,
ये सब देख आस भर आई है
हमें अंधियारा उजाला लगे
शाम भी अब सबेरा लगे
जबसे एक परी
इस उजड़ी बगियाँ में आई है
कोमल कोमल स्पर्श उसके
अब दुःख भी सुख लगने लगे
हर जगह ऐसी खुशी छाई है
एक लम्हा गुजर गया....
एक लम्हा गुजर गया
तेरी यादों में कही खो गया
ये क्या ? तेरी कदमों की
आहट सुन वह डर गया
तेरे कुचे से निकल
एक मुसाफिर किधर गया
एक लम्हा गुजर गया
धुप में जलता बदन
जरा सी छाँव को तलाशता मन
पसीने से लथपथ
दर - दर भटक कर
तुझे घर घर तलाशकर
एक मुसाफिर भटक गया
एक लम्हा गुजर गया
Tuesday, March 3, 2009
तुम जो कहो .......
तुम जो कहो
उसे प्रकाशित कर दूँ
अपने सर्वस्व को
तुम पर न्योछावर कर दूँ
अपनी समस्त ऊर्जा को
विश्रित कर दूँ
तुम जो कहो
अपने स्पर्श से
तुझे उष्मित कर दूँ
तेरे दर्द को ओढ़कर
ख़ुद को
धन्य कर दूँ
तुम जो कहो
तुझ पर जीवन
अर्पण कर दूँ
तेरे चेहरे का गुलाल
और लाल कर दूँ
दमकते सूरज को
निहाल कर दूँ
तुम जो कहो
दिन हो या रात
धुप हो या छांव
तेरे कदमों में
सर रख दूँ
तुम जो कहो
एक दिन .......
सारे दिल के दरवाजें
तो अब ये वेवाफाई कैसी
Monday, March 2, 2009
हल चलाता हुआ मंगरू मुझसे अच्छा है ......
मुझे तो बहुत कुछ पता ही नही और कुछ - कुछ पता है भी तो काम नही करता । मन से तो बिल्कुल ही नही ।
अवसर की आहट कई बार सुन कर भी अनसुना कर चुका हूँ , जिसका खामियाजा आजतक भुगत रहा हूँ । लगता है , कोई भी मंडप मेरे लिए नही सजेगा । मेरा कभी भी अभिषेक नही होगा । मै अकेला ही रह जाऊँगा । रातों में चाँदनी नसीब नही होगी ।
कोई राह नही कोई , कोई मंजील नही दिखती , गोल गोल घूम रहा हूँ । लगता है , आगे बढ़ रहा हूँ ।
क्या करू ,निर्दोष हिरणों को मारकर सेज नही सजा सकता ,
सो दुनिया से दो कदम पीछे रह गया ।
बछडे का हक़ मारकर पंचामृत नही बना सकता ,
सो प्यासा रह गया ।
चंदन तरु काटकर तिलक नही लगा सकता ,
सो आगे नही जा पाया ।
Saturday, February 28, 2009
फ़िर वो मुखडा दुबारा नजर आया ,जिसे मै भुलाने लगा था
अभी तक चेहरा जेहन में है । दिल बेचैन सा है ... कुछ सूझ नही रहा । पता नही ऐसा क्यों है । सोचता हूँ , आकर्षण किसी एक से बंधकर नही रहता । उसमे चंचलता कूट कूट कर भरी हुई है । पर यह चंचलता ठीक नही है । अब जाकर जाना ।
Wednesday, February 25, 2009
कभी - कभी खाना अच्छा बना लेता हूँ ....
आजकल रोटियां अच्छी नही लग रही । रोटी बनाने में भी बड़ा झंझट है । बनाने में मन ही नही लगता । चावल बनाना आसान है...... कुकर में पानी डालकर रख दो , एक सिटी के बाद बन गया । मार्केट से सब्जी लाओ और खा लो । इधर मेरा कुकर सिटी देना भूल गया है । अंदाज से ही काम चलाना पड़ता है ।
बैचलर लाइफ है .... बढ़िया खाना कभी कभी नसीब होता है । चावल के साथ सब्जी होती है या दाल । तीनों का मिलन तो मुस्किल से ही होता है । जब कभी तीनों साथ होते है तो ओवर डोज की मुसीबत खड़ी हो जाती है ।
अभी तो खाने के लिए नही जीता ....जीने के लिए ही कुछ खा लेता हूँ ।
अरे मै बातों में कहा चला गया । फिसल जाना और उलटा सीधा सोचना आदत बन गई है । ये अच्छी बात नही है । अभी बहुत जोरों की भूख लगी है । चावल दाल बनाया हूँ । सोचता हूँ जल्दी से खा लूँ ............
Saturday, February 21, 2009
... अब रात हो गई
किस्मत सो गई .... आखे थक गई । अब जाओ ..... मै भी जा चुका । अब मुझे तन्हा रहने दो । मुझे मजाक बनने दो .... तुमसे कोई शिकायत नही । गलती मेरी है । इतना चाहा । सारा जीवन दे दिया । अब मेरी शाम आ गई है तो तुम भी ...
पागल था । तेरी मुस्कुराहटों का । जागता था रातभर तुमको यादकर ..... तुमने अपनी अदाओं से जादू कर दिया ।
मै खिचता चला गया । तू मेरी मंजील थी । अब मै क्या राहें भी थक गई पर तेरा दर्शन नही हुआ । अब मै जा रहा हूँ ...... सबको छोड़कर ।
अब तो कुछ बचा ही नही । अब तो ख़ुद से बातें करता हूँ । अपना हमसफ़र हो गया हूँ । हाँ तेरी याद जरुर है। कैसे छोड़ सकता हूँ .... वह तो धडकनों शामिल है । भला अपनी रूह को छोड़ सकता हूँ । कभी नही । तेरे बाद .... ये यादें ही तो जिंदगी है । मेरे पास तो अब यही है । जींदगी भर की कमाई ।
एक समय था । मै एक राही था । सुनसान राहों में अकेले भटकता रहा । तब तेरी याद आती थी । काश तुम हमसफ़र होती । अब तो पावों में जंजीरें है । मुझे बांधकर ले जाया जा रहा है । वह तेरी जरुरत नही । मै खुदगर्ज नही । अकेले जाना है । जी जी कर मरना है ......
Wednesday, February 18, 2009
याद नही वो दिन .....
शायद देखा एक सपना
सपने में दिखा उजाला
सपना टूट गया
अन्धेरें रह गए
याद नही वो पल जो चले गए
चाँद सितारों की बातें
अब नही कहना
मर मर के अब
नही जीना
अबतक तो
मर मर के ही जीते रहे
याद नही वो दिन जो चले गए
आशा की किरणों से
मेरा नाता टूट गया
आगे मै बढ़ चला
कुछ पीछे छुट गया
अबतक तो
ऐसे ही चलते रहे
याद नही वो दिन जो चले गए
Sunday, February 15, 2009
Friday, February 13, 2009
विचित्र आदमी
सोचता हूँ ,विचित्रता क्या है .यह कितनी गहरी है .कोई नाम नही कोई पहचान नही ।
नही समझ पाता। खोज रहा हूँ ,कई दिनों से अंजुरी भर रोशनी । वो भी मुअस्सर नही ।
सारा ताना बाना अपने से ही छिपाता हूँ .बड़ा ही विचित्र आदमी हूँ ।
जानता हूँ चरित्र की जटिलता मुझमे नही है । साफ हूँ । फिर भी अपने से अनजान हूँ ।
विचित्र परिस्थितियों में ओस की बूंदों की तरह लुढ़कता रहा हूँ .निजपन का अभाव है ।
भय नही ,छल नही ,फिर भी विचित्र हूँ .ख़ुद से संवाद में माहिर हूँ ,पर प्रतिरोध में नही ।
अपने में निखर चाहता हूँ .मिसाल खड़ी करना चाहता हूँ ,पर लुदकाव जाता ही नही।
बेचैनी है ,वह भी विचित्र है।
सोचता हूँ ,जीवन एक बार मिलता है । उमर निकल जायेगी तब मेरी सतरंगी इच्छाओं का
क्या होगा ।
इसी सोच में समय बरबाद करता हूँ .बड़ा विचित्र आदमी
Monday, February 9, 2009
Sunday, February 8, 2009
शुन्य में भी आती जीसकी आवाज
खोजता हूँ हर तरफ़
दर्द का पता नही
हर रोज सवाल करता हूँ
समाधान पाता नही
एक अजब खामोश धड़कन
वीचलीतहो रहा मन
मन वीराने में घुलकर खो गया
लगा राह में कही पर गुम हो गया
बेजान आखें देखती रही
वह आखों से ओझल हो गया
एक सुनसान घर
देखता रहा एकटक
अंदर से आती आवाज
वो अजीब अँधेरी रात
मै गया सहम
एक अजब खामोश धड़कन